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एमपी अजब है, सबसे गजब है : लोग पूछ रहे हैं-आरटीओ के पूर्व सिपाही सौरभ शर्मा ने क्या सप्ताह में 90 घंटे किया होगा काम?

HBTV NEWS के कंसल्टिंग एडिटर अर्द्धेन्दु भूषण का कॉलम-घुमक्कड़

एमपी का एक विज्ञापन शायद आपको भी याद होगा- एमपी अजब है, सबसे गजब है। इस एड को बनाया तो गया था पर्यटन और एमपी की खूबियां बताने के लिए लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि यह मध्यप्रदेश पर पूरी तरह फिट बैठता है। इस बार बात ज्यादा लंबी न करते हुए कुछ लोगों के सवाल आपके सामने परोस रहा हूं। इनके जवाब भी साथ हैं, इनमें ही एमपी की गजबता छुपी हुई है।

सवाल-हफ्ते में 90 घंटे काम करने की चर्चा पूरे देश में है। क्या आरटीओ के पूर्व सिपाही सौरभ शर्मा ने सौ-डेढ सौ करोड़ की संपत्ति बनाने के लिए हफ्ते में 90 घंटे से ज्यादा काम किया होगा?

इसके लिए एक भी घंटे काम करने की जरूरत नहीं। यह तो एमपी का टैलेंट है। आप भी कर सकते हैं, लेकिन शर्त यह है कि किसी मंत्रीजी का हाथ सिर पर हो। फिर चाहे आप सोते भी रहें, कुबेर महाराज आपके घर का पता पूछ दरवाजा खटखटा कर पधार ही जाएंगे।

सवाल-मंत्रीजी कहीं पद से हट गए तो फिर तो बेरा गर्क है?

नहीं जी, ऐसा होता है क्या? एक मंत्री जाएंगे, दूसरे आएंगे, तीसरे आएंगे लेकिन आप एक बार सिस्टम बना लेंगे तो कई दशकों तक यह चलता रहेगा।

सवाल-फिर भी अगर पकड़े गए तो क्या होगा?

अभी सौरभ शर्मा के मामले में क्या हो रहा है? महीना पूरा होने जा रहा है, तीन-तीन खूंखार जांच एजेसियां भी उसे नहीं पकड़ पा रहीं। इधर, जिन-जिन ने सौरभ के सर पर हाथ रखा था, वे भी तो अपना सिर बचाने में लगे हैं। उनका सिर बचा तो आपका यानी सौरभ का भी बच जाएगा। चिन्ता न करो वत्स।

सवाल-एक भाजपा पार्षद के घर पर कुछ गुंडे घुसकर मारपीट करते हैं। वीडियो भी वायरल होता है, फिर सब चुप क्यों रह जाते हैं?

यह भी एमपी का गजबता ही है। यहां राजनीति का पैमाना पट्‌ठावाद ही है। अब असली ताकत भी यही कि आपका पट्‌ठा भीड़ में सिर कलम कर चल दे, और कोई उसे हाथ नहीं लगा पाए। इस मामले में भी ऐसा ही हुआ, लेकिन वह तो बात तब बिगड़ गई जो मामला आकाओं के आका तक पहुंच गया।

सवाल-इस मामले में नेताओं की जुबान खुलने में इतनी देर क्यों लगी?

देखो भाई, मामला अपनी ही जात-बिरादरी यानी पार्टी का था। वह भले ही गुंडा हो था तो अपने ही दल के मजबूत आका का पट्‌ठा। ऐसे में जुबान खोलने में थोड़ी ऊंच-नीच हो जाती तो…। इसलिए पहले किसी बड़ी जुबान के खुलने का इंतजार किया। जब बड़ी जुबान खुली तो सबने अपनी-अपनी जुबान खोल दी। एक के पीछे बोलने से एक तो आवाज भी क्लियर नहीं आती दूसरा कोई यह नहीं कह सकता कि पहले मैंने बोला था।

सवाल-इंदौर में भाजपा नगर अध्यक्ष और जिला अध्यक्ष का चुनाव क्यों नहीं हो पा रहा? क्या भाजपा में टैलेंट का अभाव है?

टैलेंट की तो बात ही न करें। भाजपा में टैलेंट भरा पड़ा है, लेकिन पट्‌ठावादी संस्कृति में आकाओं का टैलेंट ज्यादा महत्वपूर्ण है। अब देखना यह है कि किस-किस के आकाओं में अपनी बात मनवा कर अपने पट्‌ठों को पद दिलाने का जबरदस्त टैलेंट है। अभी आकाओं के टैलेंट की प्रतियोगिता चल रही है, खत्म होते ही रिजल्ट सामने होगा।

यह छुटकू बच गया था-

सवाल-इंदौर में पतंग की डोर से एक युवक की मौत हो गई। पुलिस वाले परिवारवालों पर यह क्यों दबाव बना रहे हैं कि डोर चाइनीज नहीं थी?

सीधी बात है। चायनीज डोर पर बैन है। सरकार से लेकर कलेक्टर तक आदेश जारी कर चुके हैं। यह अलग बात है कि खाकी वालों की मेहरबानी से यह हर दुकान पर मिल रही है। अब बेचारे खाकी वाले इस बात का क्या जवाब देंगे कि तमाम प्रतिबध के बावजूद चायनीज डोर बिक कैसे रही थी?

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