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‘शहर के विकास की बात करने से पहले, मधुमिलन चौराहे की पहेली तो सुलझा लो’

आज पेश हुए इंदौर नगर निगम के बजट पर अर्द्धेन्दु भूषण का कॉलम 'घुमक्कड़'

मधुमिलन चौराहे की हालत से महापौर भी चिन्तित हैं, पिछले दिनों किया था निरीक्षण

आज नगर निगम के बजट सम्मेलन से बाहर निकला ही था कि बाइक के अगले पहिए में हवा थोड़ी कम लगी। मैं हवा चेक कराने एक दुकान पर पहुंचा। दुकानदार परिचित था, जब नईदुनिया में नगर निगम बीट देखता था तो नियमित वहां जाना होता था। इसी दुकान से हवा भरवाता था और इसी बहाने दुकानदार से आसपास की खोज-खबर भी मिल जाती थी।

काफी दिनों बाद जब उसने देखा तो पूछा-नगर निगम से आ रहे हो?

मैंने कहा-हां, नगर निगम से ही आ रहा हूं। आज बजट था ना?

उसने पूछा-सुना है पानी और संपत्ति का टैक्स बढ़ा रहे हैं।

मैंने कहा-हां, पानी पर 100 रुपए और संपत्ति  कर पर अलग-अलग हिसाब से टैक्स बढ़ा है।

उसने कहा-पानी पर काहे का टैक्स? तीन-तीन चरण नर्मदा की आ गई। अब चौथे की तैयारी है, फिर भी कई कॉलोनियों में नर्मदा का कनेक्शन नहीं है।

मैंने कहा-इसीलिए तो टैक्स बढ़ाया है, ताकि सबको साफ पानी मिल सके।

उसने कहा-साफ पानी की तो बात ही मत करो। कई इलाके ऐसे हैं जहां पूरे साल गंदा पानी आता है। बरसात में तो….लायक भी पानी नहीं रहता।

मैंने कहा-अब सब ठीक हो जाएगा। चौथा चरण भी आ रहा है। 27 नई टंकियां बनेंगी। इस पर 1800 करोड़ रुपये खर्च होंगे। नई पाइप लाइनें भी बिछ रही हैं।

उसने कहा-पिछले 15 सालों से पाइप लाइन की कहानी सुन रहा हूं। ड्रेनेज की अलग पाइप लाइन डाली तो उसमें सैकड़ों करोड़ का घोटाला हो गया। अरे, तुम देखना यह सब सिर्फ पैसे खाने के लिए होता है।

मैंने कहा-ऐसा नहीं है। नगर निगम लगातार विकास कर रहा है। अब देखो न, शहर की सड़कें और चौराहे कितने सुंदर और व्यवस्थित हो गए हैं।

उसने कहा-सड़कों की बात मत करो। नई बनती है, फिर पहले नर्मदा के लिए खुदती है। जब उसकी मरम्मत हो जाती है तो फिर ड्रेनेज वाले खोदने आ जाते हैं। शहर और चौराहों के विकास का पता तो ‘मधुमिलन चौराहे’ से ही चल जाता है। पता नहीं निगम वालों ने ऐसी कौन सी पहेली बना दी जो आज तक सुलझ नहीं पा रही।

मैंने कहा-ऐसा नहीं है। चौराहा व्यवस्थित हो गया है। पिछले दिनों महापौरजी ने दौरा भी किया था। जल्दी काम पूरा हो जाएगा।

उसने कहा-देखते हैं। साल भर से ऊपर तो हो गए।

मैंने कहा-निगम ने 15 साल में पानी पर टैक्स बढ़ाया तो इतना चिल्ला रहे हो, निगम के पास पैसा नहीं आएगा तो शहर में काम कैसे होगा?

उसने कहा-तुम तो पत्रकार हो। पढ़े-लिखे भी हो। क्या तुम बता सकते हो कि शहर में कितना टैक्स बाकी है? अरे, जब निगम को ही पता नहीं तो तुम्हें कैसे होगा। मैं भी गया था टैक्स भरने। कह रहे थे पोर्टल खराब है। पुराना हिसाब भी नहीं मिल रहा, इस साल का अनुमानित इतना होगा, चुका दो। मैंने जब कहा कि पुराना बकाया बता दो, तो कहने लगे यही तो पता नहीं चल रहा।

मैंने कहा-थोड़े दिनों की बात है। निगम अब अपना पोर्टल बना रहा है।

उसने पूछा-बजट में और क्या-क्या है। सुना है अपने सामने वाली कान्ह नदी फिर से साफ होने वाली है?

मैंने कहा-हां, 500 करोड़ रुपए से ट्रीटमेंट प्लांट बनेगा, ताकि गंदा पानी साफ हो।

उसने कहा-20 साल से सुन रहे हैं। सामने ही रोज देखते हैं। यह भी एक पहेली ही है।

मैंने कहा-नगर निगम काम तो कर रहा है। देखो, सफाई में लगातार नंबर वन आ रहा है। इस पर बहुत पैसा भी खर्च हो रहा है, फिर भी टैक्स नहीं बढ़ाया।

उसने हंसते हुए कहा-सफाई…कभी होती थी। अब शहर में घूम कर देख लो, बस कचरा पेटियां ही गायब हैं।

मैंने कहा-सफाई के लिए बजट में काफी प्रावधान किए गए हैं। हर वार्ड की पांच बैकलेनों को भी सुधारा जाएगा।

वह फिर हंसा और बोला-गए जमाने। जब बैकलाइनों में क्रिकेट खेले जा रहे थे। अब उनकी हालत देख लो। जब साफ-सुथरे बैकलेन ही नहीं बचा पाए तो गंदी को क्या साफ कर पाएंगे?

मैंने कहा-शहर को सुंदर बनाने के लिए बजट में चाट-चौपाटी और हाट-बाजार भी विकसित करने का प्रावधान किया गया है।

उसने कहा-तुम भी कहां इनकी बातों में आते हो, जिंसी हाट बाजार की हालत भूल गए? जब सबकुछ टूटने लगा तो उसे फिर से बनाने की कवायद शुरू हुई। नई चौपाटी की जगह सराफा जैसी चौपाटी का ही कुछ भला कर देते, जो पूरे देश में इंदौर की शान है।

मैंने कहा- नगर निगम अब सिर्फ जनता के टैक्स के भरोसे ही नहीं रहना चाहता। अपनी आय बढ़ाने के लिए इंदौर में एक आवासीय स्कीम लागू करने की घोषणा की। इसके अलावा कुछ जगह में बहुमंजिला भवन भी बनाए जाएंगे।

उसने कहा-अब यही तो बचा है। कॉलोनी व बिल्डिंग बनाने के लिए हाउसिंग बोर्ड और आईडीए है, जो अपना काम कर रहे हैं। अब ये (निगम) अपना काम छोड़कर कॉलोनाइजर बनेगा। सही है भिया, इंदौर में पैसा तो कॉलोनाइजरों के पास ही है। यह भी खेल लें।

उसकी बकबक और आगे बढ़ती, इससे पहले ही मैं कहीं मीटिंग में जाने का बोल वहां से खिसक आया।

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