अर्द्धेन्दु भूषण
देश में सातवीं बार नंबर वन आने वाले इंदौर शहर की सफाई, प्रदूषण आदि की वर्तमान स्थिति पर जब भी सवाल उठाए जाते हैं जनप्रतिनिधि कान में रूई ठूंस लेते हैं। जनता को गंदगी दिखती है, सड़क के गड्ढे दिखते हैं, प्रदूषण दिखता है लेकन जनप्रतिनिधियों को यह सब नहीं दिखता। अगर आप शिकायत करो या मीडिया सवाल उठाए तो बेचारे नेता बुरा मान जाते हैं। सवाल उठाने वाले को विकास विरोधी और भाजपा विरोधी बता दिया जाता है। अब जबकि देश के सबसे साफ शहर इंदौर को वायु प्रदूषण में सातवां स्थान मिल गया है क्या महापौर व अन्य जनप्रतिनिधि अपना मुंह खोलने का कष्ट करेंगे। आपका जवाब देना इसलिए भी जरूरी है कि इसी वायु सर्वेक्षण में पिछले साल इंदौर को पहला स्थान मिला था।
महापौरजी, चिन्ता इसलिए हो रही है कि लगातार छह बार स्वच्छता में नंबर वन आने के बाद सातवीं बार इंदौर को सूरत के साथ नंबर वन का पुरस्कार मिला। और सूरत की रफ्तार देखिए कि वह आपके हाथ से स्वच्छ वायु का खिताब भी ले उड़ा। अगर अब भी आपने और अन्य जनप्रतिनिधियों ने शहर की चिन्ता नहीं कि तो वायु सर्वेक्षण की तरह ही स्वच्छता सर्वेक्षण में भी आप सातवें , आठवें या उससे नीचे के पायदान पर नजर आ सकते हैं। थोड़े दिनों के लिए राजनीति, खेमेबाजी, झांकीबाजी भूलकर अगर सभी जनप्रतिनिधि इंदौर शहर की सोचने लगें और जनता को साथ लेकर आगे बढ़ने की कोशिश करें तो काफी हद तक शहर की लाज बचाई जा सकती है।
जिस सूरत से डर रहा इंदौर, जबलपुर उसके पीछे पड़ा
स्वच्छ वायु सर्वेक्षण की ताजा रिपोर्ट में प्रदेश में जबलपुर शहर ने बाजी मारी है। जबलपुर 13 वें स्थान पर था, लेकिन इस बार प्रदेश में नंबर वन और देश में दूसरे स्थान पर कब्जा जमाने में उसे सफलता मिली है। एक बात और जबलपुर, सूरत से मात्र एक नंबर ही पीछे है। इससे साफ जाहिर है कि जबलपुर इंदौर से कितने कदम आगे चल रहा है। इस मामले में राजधानी भोपाल अपनी व्यावसायिक राजधानी इंदौर से कदमताल करता दिखाई दे रहा है। जहां इंदौर पहले स्थान से सातवें पर आया है, वहीं भोपाल पांचवें स्थान से आठवें पर खिसक गया है। इस सर्वे में इंदौर से अच्छी स्थिति तो ग्वालियर की रही है। पिछले साल ग्वालियर 43 वें स्थान पर था, लेकिन अब 30 वें स्थान पर आया। इससे साफ जाहिर है कि प्रदेश के ही दूसरे शहर आपको कड़ी टक्कर दे रहे हैं। अब भी मौका है संभल जाने का। सात बार के तमगे की अकड़ से बाहर निकलिए। इससे पहले कि इंदौर का और कबाड़ा हो कुछ दिन समय शहर के लिए निकाल लीजिए…राजनीति तो होती रहेगी।
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