इंदौर। दिल्ली तक बदनामी और भारी मशक्कत के बाद अंतत: इंदौर के नगर एवं जिला अध्यक्ष का फैसला हो गया है। सुमित मिश्रा को जहां नगर अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई है, वहीं श्रवण सिंह चावड़ा जिलाध्यक्ष बनाए गए हैं। सुमित मिश्रा का नाम रायशुमारी में सबसे ऊपर था, वहीं चावड़ा का नाम अचानक से ऊपर आया। दोनों ही जगह मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की चली है, लेकिन इससे इंदौर का राजनीतिक संतुलन पूरी तरह बिगड़ गया है।
उल्लेखनीय है कि जिलाध्यक्षों के लिए रायशुमारी की प्रक्रिया दिसंबर में पूरी हो गई थी। लगभग सभी जिलों में बड़े नेताओं के बीच खींचतान के कारण प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा तथा संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा को दिल्ली तक जाना पड़ा था। फिर भी कई जिलों के मसले सुलझ नहीं पा रहे थे। सबसे 12 जनवरी को भाजपा ने उज्जैन और विदिशा के जिला अध्यक्ष के नामों की घोषणा की थी। इसके बाद धीरे-धीरे अन्य जिला अध्यक्षों की घोषणा होती रही, लेकिन इंदौर के नाम पर सहमति नहीं बन पा रही थी। इसका प्रमुख कारण मंत्री कैलाश विजयवर्गीय का जिद पर अड़ जाना था। पहले विजयवर्गीय दीपक जैन टीनू को नगर अध्यक्ष बनाना चाह रहे थे, लेकिन इसका दो नंबर के नेताओं में ही विरोध शुरू हो गया था।
सुमित के नाम पर अड़ गए थे मेंदोला और शुक्ला
नगर अध्यक्ष के लिए हुई रायशुमारी में सुमित मिश्रा सबसे आगे थे। जब बीच में टीनू जैन का नाम चलने लगा तो विधायक रमेश मेंदोला सहित अन्य नेता सुमित के नाम पर अड़ गए। मंत्री विजयवर्गीय अपने बेटे आकाश की जिद के कारण टीनू को नगर अध्यक्ष बनाना चाहते थे, लेकिन मेंदोला और दो नंबर के अन्य नेताओं के विरोध के कारण उन्हें सुमित के लिए राजी होना पड़ा। सुमित के लिए विधायक रमेश मेंदोला और गोलू शुक्ला अलग से भोपाल में प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा से मिल आए थे। सुमित मिश्रा चूंकि काफी समय से दो नंबर खेमे के लिए काम कर रहे थे और अधिकांश नेता इनके नाम पर सहमत थे इसलिए विजयवर्गीय को भी टीनू के सिर से हाथ हटाना पड़ा।
तीन तिकड़ी को निपटाने के लिए चिंटू का ‘वध’
ग्रामीण क्षेत्र के लिए पहले मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की तरफ से वर्तमान जिला अध्यक्ष चिंटू वर्मा के लिए कोशिश की गई, लेकिन दूसरे मंत्री तुलसी सिलावट, मनोज पटेल, उषा ठाकुर सहित कई नेता अंतर दयाल के नाम पर अड़ गए। रायशुमारी के बाद यह भी हुआ कि मंत्री विजयवर्गीय नगर या ग्रामीण में से कोई एक पद ले लें, लेकिन वे नहीं माने। दिल्ली तक चले गए और वरिष्ठ नेताओं से दोनों पद के लिए जिद कर बैठे। विजयवर्गीय ने वरिष्ठ नेताओं से कहा भी कि जब प्रदेश के दूसरे नेताओं को दिए जा रहे हैं, तो उन्हें क्यों नहीं? इसके बाद यह तय हो गया था कि नगर एवं ग्रामीण दोनों पद विजयवर्गीय के खाते में जाएंगे और यह भी माना जाने लगा था कि चिंटू फिर से रिपीट होंगे। इसी बीच विजयवर्गीय ने अपनी रणनीति बदली। उन्हें लगा कि चिंटू सिर्फ मनोज पटेल को ही चुनौती दे सकता है, तो उन्होंने चिंटू के सिर से हाथ हटाते हुए श्रवण सिंह चावड़ा को आगे बढ़ा दिया। विजयवर्गीय को लगा कि लंबे समय से ग्रामीण क्षेत्र की राजनीति में सक्रिय वर्तमान जिला उपाध्यक्ष चावड़ा नई बनी तिकड़ी (सिलावट, पटेल और ठाकुर) को चुनौती दे सकते हैं। फिर क्या था, देपालपुर क्षेत्र के चावड़ा की लॉटरी निकल आई। संगठन को भी इनके नाम पर आपत्ति नहीं थी।
अब और बिगड़ेगा शहर का राजनीतिक संतुलन
इंदौर भाजपा के कई नेताओं का मानना है कि विजयवर्गीय की इस जिद से शहर का राजनीतिक संतुलन और बिगड़ेगा। ताई-भाई का गुट टूटने के बाद शहर में संतुलन बनाने की कोशिश हो रही थी। यहां तक कि गौरव रणदिवे भी सभी गुटों से संतुलन बनाकर चलते रहे, लेकिन अब ऐसा होने की उम्मीद नहीं है। ऐसे में आम भाजपा कार्यकर्ताओं की परेशानी और बढ़ने वाली है, क्योंकि जब शहर और ग्रामीण पर एक ही गुट का कब्जा रहेगा तो उनके लिए गुंजाइश नहीं रहेगी।
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