कहा जाता है कि कचरे के भी दिन फिरते हैं। वैसे ही हमारे शहर के टॉयलेट यानी शौचालयों के भी दिन फिरे। नगर निगम के सौजन्य से न केवल उन्हें धो-पोंछकर चमकाया गया, बल्कि फुग्गे लगाकर इस तरह तैयार किया गया कि आप वहां ‘खींसे निपोरकर’ सेल्फी ले सकें। निगम का सेल्फी विद टॉयलेट अभियान सफल रहा। बड़ा भारी प्रेस नोट जारी कर बताया भी गया कि करीब 700 शौचालयों पर एक लाख सेल्फी ली गई है। मैंने सोचा टॉयलेट भी तो खुश हुआ होगा, चलो इसी बहाने एक बार उसका हालचाल भी पूछ लेते हैं।
मैं निकल पड़ा अपने इलाके के एक टॉयलेट के पास। पहले उपयोग किया फिर पूछा, खुश तो बहुत होगे तुम। कल कितने नेता-अभिनेता, लड़के-लड़कियां तुम्हारे साथ सेल्फी खींच रहे थे, जैसे तुम कोई हीरो हो। सोशल मीडिया पर भी तुम ही छाए रहे। माफ करना, मैं कल नहीं आ पाया था।
टॉयलेट बोला-हां, खुशी तो बहुत हुई, लेकिन देखो न अब सन्नाटा है। आप मेरा इस्तेमाल कर चुके हो, पानी मिला क्या?
मैंने कहा-हां, अभी पानी नहीं है। खत्म हो गया होगा। रोज तो टैंकर आते हैं, ऊपर टंकी भी लगी है। बाहर बेसिन भी है।
टॉयलेट ने कहा-ऊपर टंकी की साइज देखी है। एक तो कभी भरते नहीं, अगर भर भी दी तो तुरंत खाली हो जाती है। जरा, बेसिन का नल चेक करो। टूटा हुआ था, कल ही नया लगा गए, कई जगह अभी भी टूटे ही हैं।
मैंने कहा-इससे क्या, रोज तुम्हारी सफाई तो होती है?
टॉयलेट ने कहा-एक बार सफाई से कुछ होता है क्या? अगर मुझे साफ देखना चाहते हो तो हमेशा पानी की व्यवस्था रखो।
मैंने कहा-अब इंदौर में हमेशा पानी की व्यवस्था तो हो नहीं सकती।
टॉयलेट ने कहा-क्यों नहीं हो सकती? अब तो पानी की कोई कमी नहीं है। मेरे सिर पर रखी टंकी की साइज बढ़ा दो। उसे दिन भर में दो-तीन बार भरवा दो। मैं साफ रहूंगा और आपको भी मेरे पास फटकने में शर्म नहीं आएगी।
मैंने कहा-थोड़ा तुम भी एडजस्ट कर लो। शहर को आठवीं बार सफाई में नंबर वन आना है, खुद को थोड़ा साफ नहीं रख सकते क्या?
टॉयलेट बोला-अब तो हद हो गई। मुझे गंदा करो तुम लोग और मुझे ही नसीहत दो कि खुद को साफ रख लो। जब तक कोई निरीक्षण, सर्वेक्षण नहीं होता हमारे आसपास तुम लोग ब्लिचिंग पाउडर या चूना तक नहीं डालते। कुछ नहीं कर सकते तो ब्लिचंग पाउडर ही तो रोज डलवा दो, ताकि आसपास से गुजरते समय तुम्हें नाक पर रूमाल न रखना पड़े।
मैंने कहा-मुझे ऐसा लगता है कि तुम विरोधी दल से मिल गए हो। मंत्री और महापौर के खिलाफ मोर्चा खोल लिया है और शहर के खिलाफ सोच रहे हो?
टॉयलेट ने कहा-हां, मुझे पता था। जब भी कोई समस्या बताता है तो सबको मिर्ची लग जाती है। मंत्री और महापौर का विरोधी बता दिया जाता है। अरे, मैं तो शहर की भलाई के लिए ही कह रहा था। सिर्फ एक दिन की चोंचलेबाजी से कुछ नहीं होने वाला।
मुझे लगा कि टॉयलेट का दिमाग शहर के गड्ढे और जगह-जगह चोरी से फेंके गए कचरे की तरह गर्म हो गया है। अब भला इसे कौन समझाए कि शहर के हित में…सरकार के हित में…प्रदेश के विकास के हित में इन्हें भी कुछ योगदान देना चाहिए या नहीं। क्या सबकुछ बेचारा अकेला नगर निगम ही कर लेगा?
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