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कतर की कहानी, जेल से रिहा हुए नौसेना के  पूर्व अफसर की जुबानी 

क़तर की जेल से रिहा होकर भारत लौटे पूर्व नेवी कमांडर अमित नागपाल का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी के हस्तक्षेप के कारण ही उन्हें रिहाई मिल सकी

कतर की कहानी, जेल से रिहा हुए नौसेना के  पूर्व अफसर की जुबानी 

क़तर की जेल से रिहा हुए नौसेना के पूर्व अफ़सर ने सुनाई आपबीती - प्रेस  रिव्यू - BBC News हिंदी

क़तर की जेल से रिहा होकर भारत लौटे पूर्व नेवी कमांडर अमित नागपाल का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी के हस्तक्षेप के कारण ही उन्हें रिहाई मिल सकी. नागपाल ने कहा  कि उन्हें कोई अंदाज़ा नहीं था कि उन्हें क़तर में क्यों गिरफ्तार किया गया. क़तर में उन पर जासूसी का आरोप लगाया गया था. अमित नागपाल ने अखबार द हिंदू की संवाददाता सुहासिनी हैदर से बात की और बताया कि कतर में बीते 18 महीनों में उन पर क्या बीती और इस बीच उनके परिवार ने क्या-कुछ झेला. वो कहते हैं कि आखिरी घड़ी तक उन्हें ये नहीं पता था कि उनका भविष्य क्या होने वाला है.

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उन्होंने कहा   11 फरवरी को, जब तक मैं दोहा की जेल से बाहर नहीं निकला था, तब तक मुझे नहीं पता था कि मुझे आजाद किया जा रहा है. मैंने भारतीय राजदूत को अपने सामने खड़े देखा और उनसे पूछा कि क्या हम भारत जा रहे हैं. उन्होंने हां कहा. तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि अब मुझे आज़ाद किया जाएगा. जिस तेज़ी से हमें जेल में डाला गया था उसी तेज़ी से हम जेल से बाहर निकल आए. मेरी पत्नी क़तर में मेरे साथ थीं, लेकिन उन्हें भी नहीं पता था कि आगे क्या होने वाला है. अमित नागपाल कहते हैं कि उनके साथ जो हुआ वो केवल उनके लिए सज़ा नहीं थी बल्कि उनके पूरे परिवार के लिए सज़ा थी.

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अपने कतर जाने के बारे में उन्होंने बताया कि उन्होंने 1987 में एनडीए ज्वाइन की और फिर 1990 में नेवी में बतौर अफसर शामिल हुए. उन्हें कतर की नौसेना के साथ ट्रेनिंग का मौका मिला था. अपनी गिरफ्तारी के बारे में उन्होंने बताया, जिस वक्त मुझे गिरफ्तार किया गया मुझे अंदाज़ा हो गया था कि मामला गंभीर है. लेकिन मुझे यकीन था कि मैंने कुछ ग़लत नहीं किया और आज नहीं तो कल, मैं बाहर निकलूंगा. मुझे यक़ीन था कि अधिकारी हमारी बात समझेंगे इसलिए मैंने खुद पर लगे आरोपों के बारे में ज़्यादा नहीं सोचा.

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जब हम जेल में थे दो राजदूत हमसे मिलने आए थे. हमें आखिरी के पांच-छह महीनों में क काउंसलर  एक्सेस भी मिला |  उन्होंने हमें भरोसा दिया. बड़ी बात ये है कि उन्होंने हमारे परिवारों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए और उसे कहा कि जब भी जरूरत पड़े वो उनसे बात कर सकते हैं. मुझे पता है कि सरकार किसी की मदद करने को कह सकती है लेकिन व्यक्ति अपने स्तर पर जो करता है वो महत्वपूर्ण होता है. राजदूत विपुल और उनसे पहले राजदूत मित्तल की टीम का रवैया बढ़िया था.

 

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