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मध्यप्रदेश उपचुनाव में विजयपुर से हारे प्रदेश सरकार के वन मंत्री रावत, भाजपा ने की री काउंटिंग की मांग, बदल भी सकते हैं परिणाम

2023 में कांग्रेस से चुने गए थे विधायक, मंत्री बनने की चाह में भाजपा में आए थे रावत

भोपाल। मध्यप्रदेश के विजयपुर उपचुनाव में प्रदेश के वन मंत्री रामनिवास रावत को हार का सामना करना पड़ा है। उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी मुकेश मल्होत्रा ने 7228 वोटों से हरा दिया है। भाजपा ने विजयपुर में री काउटिंग की मांग की है। री काउंटिंग के बाद परिणाम बदल भी सकते हैं। रावत लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। इसके बाद भाजपा ने अपनी सरकार में उन्हें वन मंत्री बना दिया था।

आज मतगणना के दौरान पहले राउंड में रावत पीछे चल रहे थे, लेकिन दूसरे राउंड में बढ़त बना ली थी। इसके बाद 17वें राउंड से अचानक फिर पिछड़ने गए। इसके बाद रावत कांग्रेस प्रत्याशी मुकेश मल्होत्रा को पीछे नहीं छोड़ पाए। 21वें राउंड की काउंटिंग में रावत मल्होत्रा से 7228  वोट से हार गए हैं। रामनिवास रावत 2023 में कांग्रेस से विधायक चुने गए थे। मंत्री बनने की चाह में वे भाजपा में शामिल हुए थे। 8 जुलाई 2024 को कैबिनेट मंत्री पद की शपथ ग्रहण की। आश्चर्य की बात है कि  उपचुनाव में 7 हजार से ज्यादा वोटों से हारने वाले रावत 2023 में कांग्रेस के टिकट पर 18059 वोटों से जीते थे। रावत को मात देने वाले कांग्रेस के मुकेश मल्होत्रा 2023 में निर्दलीय चुनाव लड़कर तीसरे नंबर पर रहे थे। रावत दल बदलने के बाद विधायक पद से इस्तीफा दे चुके थे। अब मंत्री पद से भी उन्हें इस्तीफा देना पड़ेगा।

भाजपा में ही हो रहा था विरोध

बताया जाता है कि रावत को मंत्र बनाने की बात भाजपा में ही कई नेताओं को नहीं पच रही थी। जब उन्हें विजयपुर से प्रत्याशी घोषित किया गया, तब भी जमकर विरोध रो रहा था। यहां से भाजपा से पूर्व विधायक सीताराम आदिवासी और बाबूलाल मेवाड़ा टिकट के दावेदार थे। भाजपा नेतृत्व ने दावा किया था कि असंतोष को कंट्रोल कर लिया गया है, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

कांग्रेस का जातीय समीकरण भी काम आया

श्योपुर जिले की विजयपुर विधानसभा सीट पर आदिवासी वोटरों का कब्जा है। यही वजह है कि कांग्रेस ने जातिगत समीकरण साधते हुए आदिवासी वर्ग से आने वाले मुकेश मल्होत्रा को अपना उम्मीदवार बनाया था। हालांकि मल्होत्रा पिछला चुनाव हार गए थे, लेकिन उन्होंने उस समय भी अच्छे खासे आदिवासी वोट लिए थे। हार के बाद भी वे क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहे, जिसका फायदा उन्हें इस चुनाव में मिला है।

 

 

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