इंदौर। भाजपा की नदी में कांग्रेस का काफी पानी मिल चुका है। कई कांग्रेसी नेताओं ने खुद को भाजपा की रीति-नीति के साथ ढाल लिया, लेकिन कुछ ऐसा भी हैं जो पुराना चोगा उतार नहीं पा रहे। इनमें से एक हैं भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा, जो अब तक कांग्रेस से बाहर नहीं आ पाए हैं। उनका बात-व्यवहार नहीं बदलना तो अच्छी बात है, लेकिन पुरानी फितरत का न बदलना भाजपा में ही चर्चा का विषय है।
अब आप सोच रहे होंगे कि आज यह चर्चा क्यों? चर्चा इसलिए हो रही है कि रविवार को भोपाल में मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने दीपावली पर कुछ पत्रकारों को मिलने के लिए बुलाया था। प्रदेश प्रवक्ता के नाते सलूजा जी वहां उपस्थित थे, लेकिन किसी पत्रकार से बातचीत करने या उनके साथ फोटो खिंचवाने में उन्होंने कोई दिलचपस्पी नहीं दिखाई। हां, यह कोशिश जरूर करते रहे कि सीएम को साथ फोटो आ जाए। इसमें वे सफल रहे और वही फोटो सोशल मीडिया पर डाला भी।
अब भोपाल के पत्रकार कह रहे हैं कि सलूजाजी का सिद्धांत है कि वे व्यक्ति की नहीं पद की परवाह करते हैं। हमेशा उनकी निष्ठा पद के साथ ही रही है। इसके लिए वे चाहे कांग्रेस हो या भाजपा कभी संगठन की परवाह नहीं करते। जब कांग्रेस में थे, तो सज्जन सिंह वर्मा के सहारे कमलनाथ तक पहुंचे। इसी बीच सर्वानंद नगर के एक होस्टल का मामला कमलनाथ तक पहुंच गया। भोपाल से इतनी फटकार मिली कि सलूजा जी कांग्रेस छोड़ने की जुगत में लग गए।
कतार में थे भाजपा एक मीडिया प्रभारी
जैसे-तैसे कोशिश कर आशीष अग्रवाल के माध्यम से सलूजाजी भाजपा में पहुंचे और मान-मनौव्वल कर प्रदेश प्रवक्ता का पद भी प्राप्त कर लिया। इसके लिए भाजपा के ही एक पुराने मीडिया प्रभारी को सीने पर पत्थर रखना पड़ा। वे लंबे समय से प्रदेश प्रवक्ता के पद का इंतजार कर रहे थे। बाद में संगठन ने उन्हें भी प्रदेश प्रवक्ता बनाया। भाजपा के अन्य प्रदेश प्रवक्ताओं का भी दर्द है कि वे वर्षों से पार्टी के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन जिन्हें सिर्फ अपनी दुकान चलानी है उन्हें ऐसे पदों पर क्यों बिठाया जाता है?
दिन भर में कुछ पोस्ट, काम खत्म…
अगर भाजपा के नेता ही सलूजाजी के कामकाज की समीक्षा करें तो दिनभर सोशल मीडिया के कुछ पोस्ट के अलावा कुछ नहीं मिलेगा। ना तो कभी उन्होंने संगठन के लिए कोई काम किया है और न किसी चुनाव में पार्टी के लिए माहौल तैयार करने की कोशिश की है। भाजपा के कुछ नेता कह रहे हैं कि सलूजाजी जैसे लोग सिर्फ अपना धंधा बचाने भाजपा में आते हैं। कई नेताओं ने सलूजाजी को इंदौर से लेकर भोपाल तक इधर-उधर की लगाने में ज्यादा व्यस्त पाया है। और यह उनकी पुरानी फितरत है। हर किसी से मीठा बोलना उनका स्वभाव है, जिसका नहीं बदलना अच्छी बात है। लेकिन लगाने-भिड़ाने की पुरानी फितरत का ना बदलना भाजपा के लिए चिन्ता का विषय है।
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