कल यानी सोमवार को मैं किसी काम से नगर निगम गया था। काम निपटा कर मुझे मालवा मिल की तरफ जाना था। चिमनबाग के पास कुछ लोग बुलडोजर से तोड़ाफाड़ी कर रहे थे। जिज्ञासावश रुक कर लोगों से पूछा तो पता चला कि किसी ने निगम के शौचालय पर ही कब्जा कर दुकान बना ली है। एक पल को तो मुझे भरोसा ही नहीं हुआ, लेकिन निगम की रिमूवल गैंग वाले ही यह कह रहे थे। मुझे तो जैसे चक्कर आने लगे। मैं वहीं चाय की दुकान पर सिर पकड़ कर बैठ गया।
पास में बैठे एक बाबा ने पूछा-क्या हो गया? तबीयत तो ठीक है?
मैंने कहा-आप देख रहो हो पास में यह क्या हो रहा है?
बाबा ने कहा-हां, किसी नेताजी ने नगर निगम के शौचालय में ही दुकान बनवा दी थी, उसे हटा रहे हैं?
मैंने कहा-ऐसा कैसे हो गया, वह भी नगर निगम के इतने पास। कोई इतनी हिम्मत कैसे कर सकता है?
बाबा ने कहा-सुन रहे हैं कि नेताजी ने 35 लाख रुपए में शौचालय का सौदा कर दिया था।
मैंने पूछा- नगर निगम वालों को पता कैसे नहीं चला कि इतना बड़ा कारनामा हो रहा है। अभी हाल ही में तो सभी शौचालयो को चमका कर उनके साथ सेल्फी ली गई थी।
बाबा ने कहा-अरे, यह सब तो कहने की बात है। नगर निगम के कर्मचारियों के बिना शहर में एक पत्ता तक नहीं हिल सकता।
मैंने कहा-हां बात तो सही है। हर दिन शौचालयों की सफाई का दावा किया जाता है। अगर सफाई करने आए होते, तब भी पता चल जाता।
बाबा ने कहा-सब दिखाने की बात है। होता कुछ नहीं है। अब देखना इस मामले में भी भवन अधिकारी और इक्के-दुक्के छुटभैयों पर कार्रवाई हो होने के बाद सब शांत हो जाएगा। वह भी एक कड़क निगमायुक्त बैठे हैं इसलिए।
मैंने हां में हां मिलाई-हां, बात तो ठीक ही कह रहे हो। दिन भर नगर निगम की पीली गैंग घूमती रहती है। दरोगा भी बाइक से राउंड लगाता रहता है, फिर भी ऐसा कैसे हो जाता है?
बाबा ने कहा-असली जड़ तो यही पीली गैंग और दरोगा हैं। ये कोई कब्जा हटवाने के लिए थोड़े ही घूमते हैं। यह तो सिर्फ यह देखने के लिए निकलते हैं कि कहां-कहां कब्जा हो रहा है। फिर सेटिंग कर कब्जे का लाइसेंस दे दिया जाता है।
मैंने कहा-ऐसा कैसे संभव है, जनता के टैक्स के पैसे से पल रहे नगर निगम के कर्मचारी भला ऐसा कैसे करेंगे?
बाबा ने कहा-यही तो हो रहा है। शहर में पार्किंग की समस्या है, बेसमेंट पर कार्रवाई की बात होती है, लेकिन हर दिन बिल्डिंगें तनती जा रही हैं। किसी की बेसमेंट में पार्किंग की जगह नहीं छोड़ी जाती। कहीं दुकानें हैं तो कहीं गैरेज। और तो और कई बिल्डिंगें ऐसी हैं कि इनके बेसमेंट में कार तो दूर बाइक उतारने के लिए भी सर्कस वालों को बुलाना पड़े।
मैंने पूछा-फिर ऐसे कर्मचारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती?
बाबा ने कहा-कौन करेगा कार्रवाई? नगर निगम में सबकुछ नेतागिरी के दम पर है। जिसकी परिषद वह अपने पट्ठों को भर लेता है। कोई अफसर कार्रवाई भी करना चाहे तो इंदौर से लेकर भोपाल तक से बड़े लोगों के फोन आने लगते हैं। हर पार्षद यह चाहता है कि पहले चांस में ही सारी कसर निकाल ले, आगे मौका मिले या नहीं। ऐसे में शहर के बारे में सोचने की बात करना ही बेवकूफी है।
मैंने कहा-फिर शहर कैसे चलेगा?
बाबा ने कहा-शहर ऐसे ही चलता रहेगा। कल कोई दूसरा था, आज कोई और है और कल फिर कोई दूसरा आएगा। यह परंपरा कायम रहेगी।
मैंने कहा-लेकिन यह तो कुछ ज्यादा ही हो गया। जो शहर सफाई में पूरे देश में सात बार नंबर वन आ चुका है। साफ और स्वच्छ शौचालयों के लिए भी प्रशंसा पा चुका है, उस शहर में शौचालय ही गायब।
बाबा ने कहा-तुम बहुत भोले हो। यह तो प्रत्यक्ष रूप से गायब हो गया तो दिखा। यहां तो कागजों पर कितने ही काम होते हैं और कागज पर ही गायब भी हो जाते हैं। अभी देखा नहीं कुछ समय पहले ड्रेनज घोटाले का कितना हल्ला मचा था। अफसर और नेता मिलकर बिना कुछ किए ही करोड़ों रुपए डकार बैठे थे।
मैंने कहा-यह तो शहर और यहां के जनता के साथ नाइंसाफी है?
बाबा ने कहा-तो जाओ इसी शौचालय के बचे हुए अवशेषों पर अपना सिर फोड़ लो। यह इंदौर नगर निगम है, यहां यही चलेगा।
मैंने भी सोचा कि अगर सचमुच यहां ज्यादा देर बैठा रहा तो सिर फोड़ने की नौबत आ सकती है। मैंने शहर हित को दूर पटका और खुद के हित में वहां से भाग आया।
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