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सहकारिता और आईडीए ने भूमाफियाओं को दी खुलेआम घोटाले की छूट, स्कीम 171 में सरेंडर की गई जमीन के भी भरवा लिए पैसे

वरिष्ठ अधिकारियों को भ्रम में रख एक बड़े घोटाले को दिया जा रहा अंजाम

इंदौर। लंबे समय से विवादित इंदौर विकास प्राधिकरण की योजना क्रमांक 171 छूटने के बाद भूंखड धारकों को लगा कि अब उनके साथ न्याय हो जाएगा। लेकिन, ऐसा होता नहीं दिख रहा। सहकारिता विभाग और इंदौर विकास प्राधिकरण मिलकर अभी भी इस स्कीम में भूमाफियाओं को खुलेआम घोटाला करने की छूट दे रहे हैं। इस स्कीम में आईडीए ने 13 संस्थाओं और जमीन मालिकों को विकास शुल्क जमा कराने के लिए डिमांड निकाली थी, इसमें ऐसी संस्थाओं से भी पैसे भरवा लिए गए हैं, जिन्होंने जमीन सरेंडर कर दी थी।

उल्लेखनीय है कि तत्कालीन कलेक्टर मनीष सिंह ने कई गृह निर्माण संस्थाओं की जांच कराई थी। स्कीम नंबर 171 से रजत गृह निर्माण और सन्नी गृह निर्माण का कब्जा भी हटवाया था। परी और अप्सरा गृह निर्माण संस्था में भी अनियमितता मिली थी। तब कलेक्टर ने इन संस्थाओं से जमीन सरेंडर करवा कर सहकारिता विभाग को इनकी रजिस्ट्री निरस्त कराने की कार्रवाई करने के निर्देश भी दिए थे। इसके बावजूद इंदौर विकास प्राधिकरण ने इन संस्थाओं से पैसे भरवा लिए। आश्चर्य की बात यह कि इन संस्थाओं के पैसे किसी और संस्था ने भर दिए।

किसने किसके पैसे भर दिए, पता ही नहीं

हाल ही में सहकारिता सहित सभी विभागों में सबूत सहित एक शिकायत पहुंची थी, जिसमें कहा गया था कि रजत गृह निर्माण और डायमंड इन्फ्रा के पैसे देवी अहिल्या संस्था ने भर दिए थे। शिकायत के बाद भी आईडीए ने इसकी जांच करना उचित नहीं समझा। अभी आईडीए के पास जो पैसे आए हैं, उसमें कई एमपी ऑनलाइन के माध्यम से भरे गए हैं। आईडीए ने यह भी पता नहीं करने की कोशिश की, यह पैसे किसने भरे।

जिला प्रशासन को भ्रम में रखा

आईडीए ने जो डिमांड निकाली थी, उसके लिए कलेक्टर से राजस्व खसरे का रिकॉर्ड मांगा गया था। कलेक्टर के रिकॉर्ड में उन संस्थाओं के नाम भी हैं, जिन्होंने जमीन सरेंडर कर दी है। इसका कारण है उनकी रजिस्ट्री का निरस्त नहीं होना। आईडीए ने इसी हिसाब से डिमांड निकाल दी। ऐसे में भूमाफियाओं की चांदी हो गई और वे एक बार फिर से सरेंडर की हुई जमीन के मालिक बन बैठे हैं। विशेष बात यह कि अब तक इस मामले में संभागायुक्त और आईडीए अध्यक्ष दीपक सिंह और कलेक्टर आशीष सिंह को पूरी तरह भ्रम में रखा जा रहा है।

सहकारिता विभाग चुप्पी साधे बैठा रहा

तत्कालीन कलेक्टर मनीष सिंह ने रजत गृह निर्माण, सन्नी, परी और अप्सरा संस्था की रजिस्ट्रियां निरस्त कराने के लिए सहकारिता विभाग को कहा था। इसके बावजूद सहकारिता विभाग ने सिर्फ रजत गृह निर्माण की रजिस्ट्री निरस्त कराने की कवायद शुरू की, लेकिन उसे भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। सन्नी, परी और अप्सरा की जमीनों की रजिस्ट्री निरस्त करान की कोई कोशिश नहीं हुई। इससे भूमाफियाओं से सहकारिता विभाग की मिलीभगत साफ जाहिर होती है।

डिमांड से ज्यादा भरवा लिए पैसे

आईडीए ने 221 डिमांड निकाली थी। इसके तहत 58,400,014 रुपए जमा कराने थे। जब राशि जमा कराने की फाइनल शीट बनी तो पता चला कि 227 डिमांड के एवज में 58,835, 570 रुपए जमा करा लिए गए। इस तरह करीब 4 लाख 35 हजार रुपए अधिक जमा हो गए। आईडीए को यह भी नहीं पता कि कौन, किसका पैसा भर रहा है।

आखिर इतनी जल्दी क्यों?

इस मामले में आईडीए से ज्यादा जल्दी भूमाफियाओं को थी। अगर कोई पैसा नहीं जमा कराता तो फिर यह मामला टल जाता। फिर बोर्ड में जाता और फिर नई तारीख घोषित होती, जिससे एनओसी का मामला अटक जाता। इसलिए भूमाफियाओं ने उनके पैसे भी भर दिए जो नहीं भर रहे थे। और, आईडीए को पीड़ित प्लॉटधारकों से तो कोई मतलब है नहीं, उसे पैसे चाहिए थे। कौन दे रहा, किसलिए दे रहा इससे उसका कोई वास्ता नहीं था।

जांच हो तो कई गर्दन फंसेगी

इस गड़बड़ी की जांच की जाए तो इसमें सहकारिता विभाग से लेकर आईडीए तक के कई अधिकारियों की गर्दन फंसेगी। इसके साथ ही कई भूमाफियाओं की भी कलई खुलेगी। वर्तमान सरकार भूमाफियाओं से पीड़ितों को न्याय दिलाने के प्रति गंभीर है और इसीलिए स्कीम छोड़ने की कवायद भी हुई थी। लेकिन, अधिकारी और भूमाफिया सरकार की आंखों में धूल झोंककर पीड़तों का हक मारने पर तुले हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री और जिले के प्रभारी डॉ.मोहन यादव को इस मामले की कड़ी जांच करानी चाहिए, क्योंकि यह उनका नाम बदनाम करने की साजिश है। इस जांच में यह भी पता लगाना चाहिए कि आखिर इसमें कौन भूमाफिया शामिल है और उन्हें कौन राजनीतिक संरक्षण दे रहा है।

 

 

 

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