नई दिल्ली। नोटबंदी से चलन में आए दो हजार के नोट को भारतीय रिजर्व बैंक ने 19 मई 2023 को अचानक सर्कुलेशन से वापस लेने का ऐलान कर दिया था। इस तरह ये सारे के सारे नोट रद्दी बन गए। राज्यसभा में जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से इस संबंध में सवाल पूछा गया तो उन्होंने बताया कि 2000 रुपये के डिनॉमिनेशन वाले 1000 पीस नोटों के छापने पर 3540 रुपये की लागत आई है। इस हिसाब से एक 2000 रुपये के नोट की छपाई पर 3.54 रुपये खर्च हुए हैं। 3702 मिलियन नोटों की छपाई पर 1310.508 मिलियन रुपये (1310.50 करोड़ रुपये) खर्च हुए थे। वित्त मंत्री ने बताया कि 19 मई 2023 को जब 2000 रुपये नोटों को वापस लेने का ऐलान किया गया तब 3.56 लाख करोड़ रुपये के बैंकनोट्स सर्कुलेशन में मौजूद थे जिसमें से 30 जून, 2024 तक 3.48 लाख करोड़ रुपये के नोट बैंकिंग सिस्टम में वापस आ चुके हैं।
वित्त मंत्री सीतारमण ने बताया कि भारतीय रिजर्व बैंक के मुताबिक 2000 रुपये के डिनॉमिनेशन वाले 3702 मिलियन (370.2 करोड़) नोटों की सप्लाई की गई जिसका वैल्यू 7.40 लाख करोड़ रुपये है। जुलाई 2016 से जून 2017 और जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच सभी डिनॉमिनेशन वाले नोटों की प्रिंटिंग पर 7965 करोड़ रुपये और 4912 करोड़ रुपये की लागत आई थी। इस हिसाब से नोटबंदी से चार महीने पहले और उसके बाद 20 महीने तक नोटों की छपाई पर 12877 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। यही वह समय है जब 8 नवंबर 2016 को 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट वापस लेने के एलान के बाद 2000 रुपये के नोटों के साथ 500 रुपये के नए सीरीज वाले नोट, 200 रुपये और 100 रुपये, 20 रुपये, 20 रुपये और 10 रुपये के नए सीरीज वाले नोट जारी किए गए थे।
दो परसेंट से ज्यादा नोट वापस नहीं लौटे
वित्त मंत्री ने बताया कि नवंबर, 2026 में 500 और 1,000 रुपये के नोट कुल नोटों का 86.4 फीसदी था। इसलिए 2000 रुपये का नोट शुरू किया गया था। इसका मकसद पूरा हो जाने के बाद इसे बंद कर दिया गया। उन्होंने कहा कि लेन-देन के लिए लोग 2000 के बैंक नोटों को तरजीह भी नहीं दे रहे थे। हालांकि, 2.08 फीसदी 2000 रुपये के नोटों का लौटना अभी बाकी है।
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