नई दिल्ली। प्रयागराज महाकुंभ में अब तक 54 करोड़ से ज्यादा लोग डुबकी लगा चुका है। इस बीच केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को एक रिपोर्ट सौंपी है। इसके अनुसार महाकुंभ मेले के दौरान उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में अलग-अलग स्थानों पर नदी के पानी में फेकल कोलीफॉर्म का स्तर स्नान के गुणवत्ता मानकों के अनुरूप नहीं था। फेकल कोलीफॉर्म पानी में सीवेज की मिलावट का मार्कर है। स्टैंडर्ड के मुताबिक 100 मिलीलीटर पानी में 2,500 यूनिट फेकल कोलीफॉर्म से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव, न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल की पीठ प्रयागराज में गंगा और यमुना नदियों में अपशिष्ट जल के बहाव को रोकने के मुद्दे पर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने कहा कि सीपीसीबी ने तीन फरवरी को एक रिपोर्ट दाखिल की थी, जिसमें कुछ गैर-अनुपालन या उल्लंघनों की ओर इशारा किया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि नदी के पानी की गुणवत्ता विभिन्न अवसरों पर सभी निगरानी स्थानों पर अपशिष्ट जल फेकल कोलीफॉर्म के संबंध में स्नान के लिए प्राथमिक जल गुणवत्ता के अनुरूप नहीं थी। प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान बड़ी संख्या में लोग नदी में स्नान करते हैं, जिसमें अपशिष्ट जल की सांद्रता में वृद्धि होती है। पीठ ने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने समग्र कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करने के एनजीटी के पूर्व के निर्देश का अनुपालन नहीं किया है। एनजीटी ने कहा कि यूपीपीसीबी ने केवल कुछ जल परीक्षण रिपोर्टों के साथ एक पत्र दाखिल किया।
पीठ ने कहा कि यूपीपीसीबी की केंद्रीय प्रयोगशाला के प्रभारी द्वारा भेजे गए 28 जनवरी के पत्र के साथ संलग्न दस्तावेजों की समीक्षा करने पर भी यह पता चलता है कि विभिन्न स्थानों पर अपशिष्ट जल का उच्च स्तर पाया गया है। एनजीटी ने उत्तर प्रदेश राज्य के वकील को रिपोर्ट पर गौर करने और जवाब दाखिल करने के लिए एक दिन का समय दिया। पीठ ने कहा कि सदस्य सचिव, यूपीपीसीबी और प्रयागराज में गंगा नदी में पानी की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए जिम्मेदार संबंधित राज्य प्राधिकारी को 19 फरवरी को होने वाली अगली सुनवाई में डिजिटल तरीके से उपस्थित होने का निर्देश दिया जाता है। उल्लेखनीय है कि प्रयागराज में सीवेज और वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम की मॉनिटरिंग और ट्रीटमेंट दिसंबर 2024 से जांच के दायरे में है। दिसंबर 2024 में एनजीटी ने धार्मिक आयोजनों के दौरान पानी की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सख्त नियंत्रण की बात कही थी।
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