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आखिर पुलिस क्यों बनती जा रही हर गलत काम का ‘सिंगल विंडो’

HBTV NEWS के न्यूज हेड हरीश फतेहचंदानी का कॉलम-सच कहता हूं

हाल ही में नशे के कारोबियों से मिलीभगत के आरोप में एक सिपाही को पकड़ा गया है। अफसर नशे के नेटवर्क से जुड़े और पुलिसकर्मियों की तलाश कर रहे हैं। एमआईजी थाने में एक प्रधान आरक्षक महोदय भी 50 हजार की रिश्वत लेते पकड़े गए। ये दो उदाहरण काफी हैं यह बताने के लिए कि पुलिस में आखिर चल क्या रहा है।

भोपाल में आयोजित आईपीएस मीट में सीएम डॉ.मोहन यादव ने पिछले महीने ही कहा था कि परेशानी के समय भगवान की तरह नजर आती है पुलिस। सीएम ने सच ही कहा था और आम जनता जब भी परेशानी में पड़ती है तो उसे पुलिस की याद आती है, लेकिन लोग पुलिस के पास जाने से डरते हैं। थाने में जाते ही पीड़ित को और पीड़ित करने की कोशिश ने लोकतंत्र के इस महत्वपूर्ण स्तंभ को बदनाम कर रखा है। और इस बदनामी के जिम्मेदार चंद पुलिसकर्मी ही हैं।

अब इंदौर में ही देख लीजिए। अगर आपको बोरिंग करानी है तो आपको किसी भी विभाग से परमिशन की जरूरत नहीं। संबंधित थाने की समझौता अनुमति से शहर के किसी भी हिस्से के मेन रोड पर आप रात भर बोरिंग मशीन की घड़घड़ाहट से लोगों की नींद खराब कर सकते हैं। उस इलाके का भूजल स्तर चाहे कितना भी नीचे हो आप आराम से बारह-पंद्रह सौ फीट तक बोरिंग कर सकते हैं।

सबसे बड़ा उदाहरण शराब दुकानें हैं। सरकार ने शराब दुकानों के सारे अहाते बंद कर दिए, लेकिन दुकानों के बाहर दोपहिया और चारपहिया वाहनों की भीड़ देख लीजिए। आखिर लोग यहां वाहन लगाकर कहां जाते हैं? दुकान वाले से शिकायत करो तो सीधा जवाब मिलता है, थाने में पहुंचा तो देता हूं, कुछ नहीं कर सकते। और तो और किसी इलाके के फुटपाथ पर दुकान लगानी है, तो भी नगर निगम से ज्यादा पूछ-परख खाकी ही है।

अफसर चाहे कितना भी सख्त हो, पुलिस के इस पारंपरिक क्रियाकलाप को बंद कर पाना संभव नहीं हो पाता। वर्तमान में इंदौर में संतोष सिंह जैसे सख्त कमिश्नर तैनात हैं। उन्हें सीएम का फ्री हैंड भी है। इंदौर की जनता को उनसे बहुत उम्मीद है।

गुंडों का नेटवर्क ध्वस्त करने के साथ ही पुलिस का यह नेटवर्क भी ध्वस्त होना चाहिए। यकीन मानिए कमिश्नर साहब, अगर आपने जनता को थोड़ी सी भी राहत दिला दी तो इंदौर के लोग आपको हमेशा याद रखेंगे।

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