जलवायु परिवर्तन से आर्थिक संकट का खतरा: 2030 तक 30% कृषि और आवासीय कर्ज डूबने की आशंका
बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन के चलते भारत की बैंकिंग और आर्थिक व्यवस्था पर गहरा असर पड़ सकता है
- Published On :
02-Mar-2025
(Updated On : 02-Mar-2025 10:59 am )
जलवायु परिवर्तन से आर्थिक संकट का खतरा: 2030 तक 30% कृषि और आवासीय कर्ज डूबने की आशंका
बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन के चलते भारत की बैंकिंग और आर्थिक व्यवस्था पर गहरा असर पड़ सकता है। बीसीजी (बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप) की एक रिपोर्ट में 2030 तक कृषि और आवासीय कर्ज के 30% हिस्से के डूबने का जोखिम बताया गया है।
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जलवायु परिवर्तन का बैंकों और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
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औसत वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.2°C बढ़ चुका है, जिससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़ और कृषि उत्पादन में गिरावट देखी जा रही है।
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42% भारतीय जिलों में तापमान 2030 तक 2°C तक बढ़ने का अनुमान है, जिससे 321 जिलों में आय और आर्थिक गतिविधियों पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
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अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का लगभग 50% कर्ज प्राकृतिक संसाधनों और पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर है।
नवीकरणीय ऊर्जा की जरूरत और वित्तीय अंतर
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भारत को कोयला और कच्चे तेल से हटकर नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ने के लिए सालाना 150-200 अरब डॉलर का निवेश करना होगा।
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लेकिन वर्तमान में जलवायु वित्त सिर्फ 40-60 अरब डॉलर के बीच है, जिससे 100-150 अरब डॉलर की भारी कमी बनी हुई है।
बैंकों के लिए नई रणनीति की जरूरत
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जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों को देखते हुए बैंकों को अपने ग्राहकों को हरित प्रौद्योगिकी अपनाने की सलाह देनी होगी।
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जलवायु परिवर्तन से होने वाले भौतिक जोखिमों को कम करने के लिए बैंकों को जागरूकता बढ़ानी होगी और नई रणनीतियों पर काम करना होगा।
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भारत की ऊर्जा संक्रमण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बैंकों के लिए सालाना 150 अरब डॉलर का निवेश अवसर है, जो 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को हासिल करने में मदद कर सकता है।
जलवायु परिवर्तन से कैसे निपटा जाए?
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हरित निवेश बढ़ाना: सरकार और बैंकों को नवीकरणीय ऊर्जा, ग्रीन बांड और स्थायी वित्तीय साधनों में निवेश बढ़ाने की जरूरत है।
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सामूहिक प्रयास: सरकार, निजी क्षेत्र और वित्तीय संस्थानों को मिलकर जलवायु संकट से निपटने के लिए ठोस नीति और निवेश योजनाएं बनानी होंगी।
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बैंकों की भूमिका: वित्तीय संस्थानों को पर्यावरणीय जोखिमों को अपने क्रेडिट असेसमेंट मॉडल में शामिल करना होगा, जिससे जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरों को कम किया जा सके।
अगर जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो अगले 5 वर्षों में कृषि और आवासीय क्षेत्र को भारी वित्तीय संकट का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, हरित प्रौद्योगिकी और नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश बढ़ाकर भारत आर्थिक अवसरों का लाभ उठा सकता है और जलवायु संकट से बच सकता है।
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