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मेटा ने नफरत भरे भाषणों पर नियमों में दी ढील, मानवाधिकार समूहों ने जताई चिंता

सोशल मीडिया की दिग्गज कंपनी मेटा ने अभद्र भाषणों पर रोक लगाने वाले नियमों में ढील देने का फैसला किया है।

मेटा ने नफरत भरे भाषणों पर नियमों में दी ढील, मानवाधिकार समूहों ने जताई चिंता

सोशल मीडिया की दिग्गज कंपनी मेटा (पूर्व में फेसबुक) ने अभद्र भाषणों पर रोक लगाने वाले नियमों में ढील देने का फैसला किया है। मेटा के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने इस कदम को हालिया चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप की जीत से जोड़ते हुए नियमों में बदलाव की घोषणा की है।

बदलावों के प्रमुख बिंदु

  1. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर जोर:
    अब मेटा प्लेटफॉर्म (फेसबुक, थ्रेड्स, इंस्टाग्राम) पर उपयोगकर्ता लिंग पहचान, यौन अभिविन्यास, और आव्रजन जैसे संवेदनशील मुद्दों पर खुलकर टिप्पणी कर सकते हैं।
  2. घृणास्पद टिप्पणियों की अनुमति:
    • उपयोगकर्ता समलैंगिकों को मानसिक रूप से बीमार कह सकते हैं।
    • "घृणास्पद भाषण डराने-धमकाने का माहौल बनाता है और हिंसा को बढ़ावा दे सकता है" जैसे वाक्य को कंपनी की नीति से हटा दिया गया है।
  3. कंटेंट मॉडरेशन लागत में कटौती:
    विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम डोनाल्ड ट्रंप सरकार को खुश करने और कंटेंट मॉडरेशन की लागत को कम करने के उद्देश्य से उठाया गया है।

विशेषज्ञों और मानवाधिकार समूहों की प्रतिक्रिया

  1. नकारात्मक सामाजिक प्रभाव:
    मानवाधिकार समूहों ने चेतावनी दी है कि इन बदलावों से सोशल मीडिया पर घृणास्पद भाषणों की बाढ़ आ सकती है, जिसका सीधा असर समाज पर पड़ेगा।
  2. मेटा की जिम्मेदारी पर सवाल:
    मेटा के पूर्व इंजीनियरिंग निदेशक आर्टुरो बेजर ने कहा,
    "इन नीतियों में बदलाव से युवाओं पर नकारात्मक असर पड़ेगा। मेटा सुरक्षा और जिम्मेदारी से पीछे हट रहा है।"
  3. वैश्विक प्रभाव:
    बेन लीनर, वर्जीनिया विश्वविद्यालय के व्याख्याता, ने कहा,
    "यह फैसला न केवल अमेरिका बल्कि दुनिया भर में अभद्र भाषा और गलत सूचना को बढ़ावा देगा। इससे वास्तविक दुनिया में नुकसान होगा।"

मेटा के फैसले के पीछे कारण

  • एलन मस्क के "एक्स" के नक्शेकदम पर:
    मेटा का यह कदम मस्क के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स की अभिव्यक्ति की आजादी पर आधारित नीतियों की नकल माना जा रहा है।
  • राजनीतिक दबाव:
    ट्रंप समर्थक सरकार के साथ तालमेल बनाने और उनकी नीतियों का समर्थन प्राप्त करने का प्रयास।

भविष्य के खतरे

मेटा के इस फैसले से नफरत भरे भाषणों और ऑनलाइन उत्पीड़न में वृद्धि की संभावना है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचा सकता है और खासतौर पर युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। वहीं मेटा का यह निर्णय विवादास्पद है और सोशल मीडिया की भूमिका, उसकी जिम्मेदारियों, और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संतुलन को लेकर नई बहस को जन्म दे रहा है।

 

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