इंदौर। दैनिक भोजन में मोटा अनाज शामिल करने से एनीमिया के साथ मधुमेह होने की आशंका कम होती है। साथ ही जिन्हें यह रोग हैं उनमें भी सुधार देखा गया है। एम्स ने अपने विश्लेषण के बाद यह दावा किया है। एम्स ने तीन स्तर पर मोटे अनाज का इस्तेमाल शुरू किया। सबसे पहले डॉक्टरों की कैंटीन में मोटे अनाज को शामिल किया गया। इसके बाद एम्स में भर्ती होने वाले मरीजों को भी मोटा अनाज देना शुरू हुआ। साथ ही एम्स के सामुदायिक चिकित्सा विभाग की ओपीडी में आने वाले मरीजों को खाने में मोटा अनाज शामिल करने की सलाह दी गई।
तीन स्तर पर मोटे अनाज के इस्तेमाल के बाद यह पाया गया है कि केवल गेहूं और चावल खाने वाले लोगों के मुकाबले मोटा अनाज खाने वाले लोगों में पोषण तत्व ज्यादा मिले। ऐसे लोगों में मधुमेह और एनीमिया के मामले कम हुए हैं।
मोटा अनाज भारत का पारंपरिक खाना है। इसमें प्रचुर मात्रा में पोषण तत्व हैं। यह हमारे शरीर की संरचना के आधार बने हुए हैं। इससे एलर्जी नहीं होती। यही कारण है कि इसकी मदद से मधुमेह, एनीमिया के साथ दूसरे रोगों की रोकथाम संभव हो सकेगी। बता दें कि देश की 50 फीसदी महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं। वहीं मधुमेह के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं।
गेहूं के इस्तेमाल से बढ़ीं समस्याएं
हजारों साल से भारतीय लोग मोटा अनाज खा रहे थे। ब्रिटिश काल में दैनिक भोजन में गेहूं को शामिल करने से आंत में सूजन की समस्या बढ़ी। इसके कारण शरीर में कई रोगों ने जन्म लिया। इसमें मधुमेह, मानसिक रोग सहित दूसरे विकार शामिल हैं। यदि हम दैनिक खाने में मोटा अनाज शामिल करते हैं तो खाने का पोषक फिर से शरीर को मिलेगा। यह प्राकृतिक भोजन है। इससे शरीर को कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटिन सहित दूसरे तत्व आसानी से मिलते हैं। शरीर और मस्तिष्क को बैलेंस न्यूट्रिशन मिलने से विकास होता है।
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