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सावधान! तेज आवाज में ईयरफोन और वीडियो गेमिंग से बढ़ रहा है बहरापन का खतरा

WHO की एक रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है दुनिया भर में 12 से 35 वर्ष की आयु के एक अरब से अधिक लोग सुनने की क्षमता में कमी या बहरेपन के खतरे का सामना कर सकते हैं।

सावधान! तेज आवाज में ईयरफोन और वीडियो गेमिंग से बढ़ रहा है बहरापन का खतरा

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक हालिया रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है—दुनिया भर में 12 से 35 वर्ष की आयु के एक अरब (100 करोड़) से अधिक लोग सुनने की क्षमता में कमी या बहरेपन के खतरे का सामना कर सकते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण तेज आवाज में वीडियो गेमिंग और ईयरफोन या हेडफोन का अधिक उपयोग बताया जा रहा है।

भारत में भी गंभीर स्थिति

भारत में भी सुनने की समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। WHO के अनुसार, देश की लगभग 6.3% आबादी (6.3 करोड़ लोग) सुनने की गंभीर समस्या से जूझ रही है। चिंता की बात यह है कि इनमें एक बड़ा हिस्सा 0 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों का है। 2011 की भारतीय जनगणना के अनुसार, 19% आबादी को किसी न किसी रूप में श्रवण क्षमता की समस्या थी।

तेज आवाज से कानों को हो सकता है स्थायी नुकसान

विशेषज्ञों का कहना है कि लाइफस्टाइल से जुड़ी कुछ आदतें इस समस्या को बढ़ा रही हैं। वीडियो गेमिंग के दौरान तेज आवाज, ईयरबड्स में लगातार तेज संगीत सुनना और शोरगुल वाली जगहों पर ज्यादा समय बिताना सुनने की क्षमता को तेजी से प्रभावित कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, हेडफोन और ईयरबड्स का उपयोग करने वाले 65% लोग 85 डेसिबल से अधिक तीव्रता वाली आवाज में संगीत सुनते हैं, जो कानों के आंतरिक हिस्से के लिए बेहद हानिकारक है।

सामान्य रूप से 25-30 डेसिबल तक की ध्वनि को सुरक्षित माना जाता है, लेकिन 80-90 डेसिबल की आवाज स्थायी रूप से सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचा सकती है। एक अध्ययन में पाया गया कि वीडियो गेमिंग के दौरान अधिकांश लोग 85-90 डेसिबल तक की ध्वनि के संपर्क में आते हैं, जो कानों की सहनशक्ति से कहीं अधिक है।

टिनिटस: लगातार गूंजने वाली आवाज से बढ़ता मानसिक तनाव

विशेषज्ञों के अनुसार, हेडफोन्स और वीडियो गेमिंग की तेज आवाज न केवल सुनने की क्षमता को प्रभावित करती है, बल्कि टिनिटस (Tinnitus) नामक समस्या भी बढ़ा रही है। टिनिटस की स्थिति में व्यक्ति को सिर या कानों में लगातार गूंजने, बजने, भनभनाने, फुफकारने या दहाड़ने जैसी आवाजें सुनाई देती हैं।

यह समस्या मानसिक तनाव, चिंता और कार्यक्षमता पर बुरा प्रभाव डालती है। इससे पीड़ित लोगों को एकाग्रता और नींद से जुड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी उत्पादकता भी प्रभावित होती है।

बहरापन और डिमेंशिया का गहरा संबंध

अमेरिका के कोलोराडो विश्वविद्यालय में ईएनटी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. डैनियल फिंक का कहना है कि ईयरबड्स और हेडफोन का बढ़ता उपयोग युवाओं में 40 वर्ष की उम्र तक सुनने की क्षमता को कमजोर कर सकता है।

सुनने की क्षमता में गिरावट केवल कानों तक सीमित नहीं है—यह मस्तिष्क पर भी गंभीर असर डाल सकती है। शोध में पाया गया कि सुनने की समस्याओं से जूझ रहे लोगों में डिमेंशिया (मस्तिष्क संबंधी रोग) का खतरा दोगुना होता है, जबकि पूरी तरह बहरे लोगों में यह खतरा पांच गुना अधिक हो सकता है।

कैसे बचें इस खतरे से?

  • ईयरफोन/हेडफोन का उपयोग सीमित करें और वॉल्यूम को 60 डेसिबल से नीचे रखें।

  • शोरगुल वाली जगहों पर ज्यादा देर न रुकें, कानों को पर्याप्त आराम दें।

  • हियरिंग टेस्ट कराएं, अगर सुनने में किसी भी तरह की परेशानी महसूस हो।

  • नॉइज़ कैंसलेशन हेडफोन का उपयोग करें ताकि तेज आवाज में संगीत सुनने की जरूरत न पड़े।

  • वीडियो गेमिंग के दौरान आवाज के स्तर को नियंत्रित रखें।

तेज आवाज की यह लत युवा पीढ़ी के लिए खतरे की घंटी बन रही है। समय रहते अगर सतर्कता नहीं बरती गई, तो सुनने की क्षमता की यह समस्या एक वैश्विक महामारी का रूप ले सकती है। 

 

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