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महाराष्ट्र और झारखंड में सजा मैदान, खिलाड़ियों ने अभी तक नहीं कसी कमर, सीट शेयरिंग फार्मूला पर अटकी है बात

दोनों ही राज्यों में क्षेत्रीय दलों का दबदबा, ज्यादा सीटों की डिमांड पर फंस रहा पेंच

नई दिल्ली। चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनावों के लिए तारीखों की घोषणा कर दी है। मैदान सज गया है लेकन खिलाड़ियों ने अभी भी कमर नहीं कसी है। इन दोनों राज्यों में क्षेत्रीय दलों की अहमियत के कारण भाजपा और कांग्रेस के लिए सीट शेयरिंग फार्मूला तय करना आसान नहीं है। यही वजह है कि कई बैठकों के बाद भी अभी इसका खुलासा नहीं हुआ है। भाजपा व कांग्रेस दोनों के लिए सहयोगी दलों को राजी करने में परेशानी आ रही है।

महाराष्ट्र में इस तरह उलझ रहा मामला

भाजपा को झारखंड से ज्यादा परेशानी महाराष्ट्र में आने वाली है। यहां चार क्षेत्रीय पार्टियों के बीच 288 सीटों का गणित सुलझने का नाम नहीं ले रहा। महायुति गठबंधन में भाजपा 150 से 160 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है, जबकि शिवसेना (शिंदे गुट) 90 से 100 सीटें चाहती है। एनसीपी (अजीत पवार) की तरफ से  50 से 60 सीट की डिमांड है।  यही कारण है कि अभी तक सीट शेयरिंग फार्मूले की घोषणा नहीं हो पाई है। इधर, महा विकास आघाड़ी में शिवसेना (उद्धव गुट) 100 से 110 पर चुनाव लड़ने की इच्छुक है, वहीं कांग्रेस भी इतनी ही सीटें चाहती है। एनसीपी (शरद पवार) गुट भी कम से कम 70 से 80 सीट चाहती है।

झारखंड भी कम पेचीदा नहीं

झारखंड में भाजपा और कांग्रेस दोनों सहयोगी दलों से परेशान हैं। भाजपा की परेशानी यह है कि वहां जदयू भी चुनाव लड़ना चाहती है। आजसू भी भाजपा के साथ है। दोनों कम से कम 10 सीटों की डिमांड कर रहे हैं, जबकि भाजपा अधिकतम 5 सीट दे पाएगी। झारखंड की 81 सीटों में से 41 सीटें पानेवाली पार्टी सत्ता में आ जाएगी। इसी तरह इंडिया गठबंधन में शामिल जेएमएम 49 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। अगर ऐसा हुआ तो बची हुई 32 सीटों का बंटवारा कांग्रेस, आरजेडी और सीपीआई एमएल के बीच होगा। यह किसी दल विशेषकर कांग्रेस को तो बिल्कुल ही मंजूर नहीं है।  पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 31 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, इस बार ज्यादा सीटों की डिमांड है। अगर जल्द ही दोनों राज्यों में सीट शेयरिंग फार्मूला तय नहीं होता, तो सभी दलों के लिए संकट बढ़ जाएगा।

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