मुंबई। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव परिणाम ने महाविकास अघाड़ी को कहीं का नहीं छोड़ा। राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार ने 84 साल की उम्र में ऐसी हार की उम्मीद नहीं की होगी। बालासाहेब ठाकरे की गद्दी संभाल रहे उद्धव ठाकरे की राजनीतिक विरासत ही दांव पर लग गई है। कांग्रेस की जो बुरी गत हुई है उससे उबरने में उसे काफी वक्त लगेगा। मराठी भाषियों के दम पर राजनीति करने वाले मनसे के राज ठाकरे अपने बेटे को भी जीत नहीं दिला पाए।
इस चुनाव ने शिवसेना (यूबीटी) के नेता उद्धव ठाकरे के बड़ा झटका दिया है। उनकी पार्टी के लिए विपक्ष के नेता की भूमिका निभाना भी एक चुनौती है। अब तो उद्धव के नेतृत्व पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि उनके नेतृत्व में एक गुट एकनाथ शिंदे ले गए और इसके बाद लगातार पार्टी कमजोर होती चली गई। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के शरद पवार को इस चुनाव ने बुरी तरह तोड़ दिा है। पिछले दिनों वे अपने राजनीतिक संन्यास की बात कर रहे थे, अब न चाहते हुए भी उन्हें ऐसा करने पर मजबूर होना पड़ेगा। कांग्रेस की भूमिका की बात करें तो वह उद्धव ठाकरे और शरद पवार की नौका की पतवार भी नहीं बन पाई। लोकसभा चुनाव में ऐसा लगा था कि पार्टी थोड़ा आगे जा रही है, लेकिन राहुल गांधी उसे संभाल नहीं पाए। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि क्या महाविकास अघाड़ी एकजुट रह पाएगी।
महायुति ने नब्ज पर रखा हाथ
महाविकास अघाड़ी से अलग महायुति ने महाराष्ट्र की जनता की नब्ज पर हाथ रखने की कोशिश में लगी रही। जहां जातीय समीकरण की जरूरत रही, वहां उस पर ध्यान दिया जहां विकास की जरूरत थी, वहां उसे पूरा किया। एकनाथ शिंदे, फडणवीस और अजित पवार के बीच मनमुटाव की खबरें भी आती रहीं, लेकिन मैदान में जनता के बीच वे एकजुट दिखे। हिन्दू वोटों के बंटवारे के मुद्दे को महायुति भुनाने में सफल रही। शरद पवार जैसा दिग्गज नेता भी पीएम नरेंद्र मोदी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के नारों का तोड़ नहीं निकाल पाए।
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