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भाजपा के 62 जिलाध्यक्षों में से एक भी सिख समाज का नहीं, गुरु सिंह सभा ने प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा को पत्र लिख जताई आपत्ति

नेताओं ने अपने पट्‌ठों के चक्कर में कई समाजों का नहीं रखा ध्यान

इंदौर। भाजपा ने काफी मशक्कत के बाद प्रदेश के सभी 62 जिलाध्यक्षों की घोषणा कर दी है, लेकिन इसमें से एक भी जिले में सिख समाज का कोई प्रतिनिधि नहीं है। गुरु सिंह सभा ने इस पर कड़ी आपत्ति लेते हुए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा को पत्र लिखा है।

एमपी-सीजी केंद्रीय श्री गुरु सिंह सभा के अध्यक्ष हरपाल सिंह (मोनू) भाटिया ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा को लिखे अपने पत्र में कहा है कि मध्य प्रदेश में सिख समाज की एक बड़ी संख्या निवास करती है। जो  प्रारंभ से ही भाजपा के साथ जुड़कर उसकी मजबूती के लिए कार्यरत रही है। सिख समाज ने हमेशा पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा और समर्पण दर्शाया है और भविष्य में भी इसी भावना के साथ कार्य करता रहेगा। हाल ही में भाजपा द्वारा मध्य प्रदेश में 62 जिला अध्यक्षों की नियुक्ति की गई, किंतु इसमें सिख समाज का कोई भी प्रतिनिधि शामिल नहीं किया गया। यह समाज के लिए चिंता का विषय है। भाटिया ने लिखा है कि भविष्य में जब भी पार्टी द्वारा नियुक्तियां की जाएं, सिख समाज को भी प्रतिनिधित्व प्रदान करने की कृपा करें। इससे सिख समाज में हर्ष की लहर दौड़ेगी और पार्टी के प्रति उनका विश्वास और अधिक सशक्त होगा। भाटिया ने इस पत्र की कॉपी मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव, प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा और मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल को भी भेजी है।

पट्‌ठों के चक्कर में नहीं रखा ध्यान

भाजपा जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में जो गुटबाजी और उठापटक हुई है, उसकी गूंज दिल्ली तक सुनाई दी है। सारे दिग्गज नेताओं ने अपने-अपने पट्‌ठों की नियुक्तियों के लिए ने तो भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं का ध्यान रखा और न ही समाजों के प्रतिनिधित्व की याद उनको आई। सभी बस इसी कोशिश में लगे रहे कि सारे पदों पर अपने समर्थकों की नियुक्ति करा दी जाए। इंदौर का मामला तो जगजाहिर है कि किस तरह यहां नियुक्तियां अटकी रहीं और सबसे अंत में यहां की घोषणा हुई।

कई अन्य समाजों में भी आक्रोश

भाजपा की सूची से कई अन्य समाजों में भी आक्रोश है। इससे पहले जब इदौर में मंडल अध्यक्षों की घोषणा की गई थी तो इसमें भी पट्‌ठावाद इतना चला कि कई समाजों के जमीनी कार्यकर्ताओं को जगह नहीं मिली। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मराठी समाज था, जिसका नेतृत्व आठ बार की सांसद सुमित्रा महाजन करती आईं हैं। इस समाज ने उस समय काफी आक्रोश व्यक्त किया था।

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