इंदौर। भाजपा ने अधिकाश जिलों में अपने जिला अध्यक्षों की घोषणा कर दी है, लेकिन इंदौर का मामला सुलझता नजर नहीं आ रहा। भाजपा के दिग्गज माने जाने वाले नेताओं की आपसी खींचतान में इंदौर की घोषणा रुकी हुई है। मंत्री कैलाश विजयवर्गीय खुद ही फैसला नहीं कर पा रहे हैं कि टीनू जैन को बनाएं या सुमित मिश्रा को। इसके साथ ही चिंटू वर्मा को भी जिले में देखना चाहते हैं। अगर ऐसी ही स्थिति रही तो नए प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव तक इंदौर का मामला टल जाएगा।
उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया भी चल रही है। जिला अध्यक्षों के घोषणा के कारण मामला टलता जा रहा था। अब तक 57 जिलों के अध्यक्ष घोषित हो गए हैं। सिर्फ पांच जिलों के ही बाकी हैं। पांच जिलों से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। सूत्र बताते हैं कि 25 जनवरी को मध्यप्रदेश के लिए नियुक्त चुनाव अधिकारी धर्मेन्द्र प्रधान भोपाल आ रहे हैं। जाहिर है तब प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। ऐसे में अगर इंदौर का फैसला नहीं होता तो नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा तक यह टल जाएगा।
मूल कार्यकर्ता बनाम व्यवहार की लड़ाई
इंदौर मे मंत्री कैलाश विजयवर्गीय अपने बेटे की पसंद दीपक जैन टीनू को नगर अध्यक्ष बनवाना चाहते हैं। पहले उन्होंने टीनू का नाम पुरजोर तरीके से रखा। इस कवायद में उनकी दो नंबर की टीम में ही विरोध के स्वर उभरने लगे। चूंकि रमेश मेंदोला सहित कई अन्य नेता सुमित मिश्रा को नगर अध्यक्ष बनवाना चाहते हैं, इसलिए मामला उलझ गया। दो नंबर खेमे के नेताओं का कहना है कि सुमित बहुत पुराना कार्यकर्ता है, जबकि टीनू जैन अपने व्यवहार के लिए जाने जाते हैं। टीनू की शराब माफिया से सांठगांठ भी किसी से छुपी नहीं है। टीनू के व्यवहार की चर्चा भोपाल से लेकर दिल्ली तक है। विरोध देखते हुए मंत्री विजयवर्गीय ने भी सुमित का साथ देने का सोचा, लेकिन बेटे के दबाव में उनका मन डंवाडोल हो रहा है।
सिलावट सहित कई नेताओं ने ग्रामीण में फंसाया पेंच
मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ग्रामीण क्षेत्र में भी अपना ही वर्चस्व चाहते हैं। पहले जब उन्हें लगा कि सिर्फ नगर या ग्रामीण में से एक विकल्प मिल सकता है तो उन्होंने अपने ही समर्थक चिंटू वर्मा के सिर से हाथ हटा लिया था। बाद में अपने ही गुट में विरोध देख फिर चिंटू के पक्ष में खड़े हो गए। दूसरी तरफ मंत्री तुलसी सिलावट, विधायक मनोज पटेल, उषा ठाकुर सहित कई नेता अंतर दयाल के नाम पर अड़े हुए हैं। इनका यही कहना है कि जब रायशुमारी के नाम से नगर में दीपक जैन या सुमित मिश्रा के नाम की बात हो रही है, तो जिले में भी सबसे ज्यादा नेताओं ने रायशुमारी में अंतर दयाल का नाम दिया है। तुलसी सिलावट की तरफ से केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी लॉबिंग कर रहे हैं। ऐसे में मामला और उलझता गया। मंत्री विजयर्गीय भोपाल से लेकर दिल्ली तक गुहार लगा चुके हैं कि नगर एवं जिले में दोनों नाम उनके ही तय किए जाएं, लेकिन वरिष्ठ नेता फैसला नहीं ले पा रहे।
राजनीतिक संतुलन की बार-बार उठ रही बात
इंदौर में बार-बार राजनीतिक संतुलन की बात उठाई जाती रही है। ताई के मैदान से हटने के बाद अब प्रमुख रूप से यहां दो गुट दिखाई दे रहे हैं। सांसद शंकर लालवानी का तो कोई गुट ही नहीं है, वे हमेशा जहां दम, वहां हम वाले सिद्धांत पर चलते हैं। वर्तमान में दो विजयवर्गीय के दो नंबर खेमें में महापौर पुष्यमित्र भार्गव, विधायक रमेश मेंदोला व गोलू शुक्ला सहित कुछ अन्य नेता हैं। एक दूसरा गुट तुलसी सिलावट, मनोज पटेल, उषा ठाकुर और अन्य नेताओं का है। विधायक मालिनी गौड़ इन दोनों गुट में नहीं हैं, लेकिन उन्हें मनोज पटेल आदि का साथ मिलता रहता है। अब भाजपा नेता ही सवाल उठा रहे हैं कि अगर नगर एवं जिले के दोनों ही पद दो नंबर खेमे में चले गए तो राजीतिक संतुलन फिर बिगड़ जाएगा।
सबको साथ लेकर चलने वाला नेता चाहिए
भाजपा के नेताओं का ही कहना है कि वर्तमान में गौरव रणदिवे जैसा नगर अध्यक्ष चाहिए, जो सबको साथ लेकर चले। यही वजह है कि भाजपा के कुछ नेताओं ने पूर्व विधायक जीतू जिराती से भी बात की थी। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की चिन्ता है कि वर्तमान में भाजपा नगर एवं जिला अध्यक्ष को लेकर इंदौर के नेताओं में जिस तरह की खींचतान चल रही है, बाद में क्या होगा? पूरे प्रदेश के मामले सुलझते गए, लेकिन इंदौर में इस बार इतनी उलझन हुई कि दिल्ली तक इसकी चर्चा में है। ऐसे में भोपाल व दिल्ली के नेता इस कोशिश में हैं कि किसी भी तरह इंदौर का राजनीतिक संतुलन बना रहे।
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