अंग्रेजी नए साल की शुरुआत अपने शहर में कुछ अच्छी नहीं हुई। खैर, गुंडागर्दी तो होती रहती है, उसके बगैर राजनीति की कल्पना नहीं की जा सकती लेकिन इस बार जो कुछ हुआ वह तो बिल्कुल ही अलग था। पहले सरकारी अधिकारी पीटे जाते थे। कोई नगर निगम में घुसकर मारता था, तो कोई जनप्रतिनिधि बल्ले से पुचकार लेता था। बाद में सब मामला रफादफा हो जाता था।
इस बार जो कुछ हुआ उसकी कल्पना शायद मां देवी अहिल्या ने भी नहीं की होगी। भाजपा की सरकार है, सभी विधानसभाओं में भाजपा के विधायक हैं, नगर निगम भी भाजपा की है। ऐसे में एक भाजपा पार्षद के घर एक भाजपा के ही महापौर परिषद के सदस्य के भेजे गुंडे दिनदहाड़े घुस जाते हैं। पार्षद की मां को प्रताड़ित करते हैं, उनके नाबालिग बच्चे के साथ गलत हरकतें करते हैं और इतना ही नहीं इसका वीडियो भी वायरल करते हैं। फोन पर धमकियां भी दी जाती हैं और इसके ऑडियो भी वायरल होते हैं। इसके बावजूद पूरे शहर में सन्नाटा पसरा रहा।
वे मंत्रीजी भी चुप थे जो हर छोटे-बड़े मामलों में मुंह खोल लेते हैं। भारत में सर्वाधिक मतों से जीतने वाले सांसद महोदय ने तो हद ही कर दी। जिस सिंधी समाज के नाम पर लोकसभा का टिकट लेकर आए, उस समाज को दुलत्ती मार दी। न तो समाज की बैठकों में गए और न ही पार्षद के घर जाकर उसकी मां और बेटे की आंसू पोंछने की कोशिश की। वे जागे और तब जागे जब कल सीएम ने ट्वीट कर इस घटना की निंदा कर दी। क्या सांसद महोदय बता सकते हैं कि 4 जनवरी की इस घटना की निंदा का संदेश 9 जनवरी तक मन में दबा के क्यों रखा?
बात-बात पर बड़े नेताओं से लेकर अधिकारियों तक को चिट्ठी लिखने वाली पूर्व लोकसभा स्पीकर और आठ बार की इंदौर की सांसद की चुप्पी भी शहर के लोग पचा नहीं पा रहे हैं। अभी उनके बेटे के शोरूम पर भाजपा से जुड़े कुछ लोगों ने तोड़फोड़ कर दी थी, तो उन्होंने हल्ला मचा दिया था। इतना ही नहीं मंत्री महोदय भी हालचाल लेने पहुंच गए थे। फिर इस मामले में चुप्पी क्यों?
दरअसल इस पूरे मामले को विधानसभा 2 और 4 की लड़ाई के रूप में दिखाने की कोशिश हुई। मामला था भी यही, लेकिन इससे बड़ी बात यह कि इस शांतिप्रिय शहर में किसी को भी किसी के घर में घुसकर ऐसी हरकत करने की छूट कैसे दी जा सकती है? राजनीतिक रूप से देखें तो सबसे मजबूत विधायक मालिनी गौड़ निकलीं, जो अपने पार्षद के लिए खुलकर सामने आईं। जैसे ही उन्हें सूचना मिली कि सीएम इंदौर में हैं, वे अपने पार्षद और उसके परिवार को लेकर सीएम से मिलने पहुंच गईं। उनके बेटे एकलव्य सिंह गौड़ ने भी खुलकर साथ दिया। और तो कुर्सी जाने के आखिरी समय में भी भाजपा नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे ने दिलेरी दिखाई और दोनों पार्षदों को नोटिस जारी कर जवाब मांग लिया।
चलो एक बार के लिए मान भी लेते हैं कि मामला दो नंबर और चार नंबर का था। चार नंबर वाले बोले, दो नंबर वालों का चुप रहना जायज हो सकता है। सांसद महोदय के बारे में भी शहर के सारे नेताओं और लोगों को पता है कि वे किसी के भी नहीं। कई बार लगता है खुद के भी नहीं। लेकिन, महापौर का क्या हुआ? वे तो पूरे शहर के हैं। रहते विधानसभा चार में हैं। उन्हें अपने पार्षद के पास जाने में 6 दिन क्यों लग गए?
शहर यह सवाल कर रहा है कि अगर सीएम ट्वीट नहीं करते तो आपकी तंद्रा भंग नहीं होती। क्या यह शहर आपका नहीं है? यह तो एक राजनीतिक मामला था, लेकिन अगर शहर के किसी आम आदमी के साथ ऐसा होता है तो क्या आप जैसे पुलिस थानों के सीमा के विवाद में उलझी रहती है, आप विधानसभा क्षेत्र की सीमा पता लगाते रहते?
जागिए…इससे पहले कि बहुत देर न हो जाए...
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