नई दिल्ली। मणिपुर एक बार फिर हिंसा की चपेट में है। यह हालात वहां कोई एक-दो दिन में नहीं बने हैं, बल्कि लंबे समय से हैं। विपक्ष के लगातार हमले के बावजूद न तो पीएम नरेंद्र मोदी और न ही गृह मंत्री अमित शाह ने इसमें कोई दिलचस्पी दिखाई। दोनों नेता महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव में लगे रहे। रविवार को अचानक जब गृह मंत्री अमित शाह ने महाराष्ट्र का दौरा रद्द कर नागपुर से दिल्ली के लिए वापसी की तो चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया। दरअसल शाह नेशलन पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) द्वारा मणिपुर सरकार से समर्थन वापस लेने से चिन्ता में आ गए हैं।
उल्लेखनीय है कि कॉनराड संगमा के नेतृत्व वाली एनपीपी ने रविवार को भाजपा से अपना समर्थन वापस ले लिया। कोनराम संगमा ने रविवार को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा को लिखे पत्र में कहा था कि नेशनल पीपुल्स पार्टी मणिपुर राज्य में मौजूदा कानून और व्यवस्था की स्थिति पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त करना चाहती है। पिछले कुछ दिनों में, हमने स्थिति को और बिगड़ते देखा है, जहां कई और निर्दोष लोगों की जान चली गई है। संगमा ने कहा था कि उन्हें पक्का लगता है कि बीरेन सिंह के नेतृत्व में मणिपुर राज्य सरकार संकट को हल करने में पूरी तरह विफल रही है। 60 सीटों वाली मणिपुर विधानसभा में एनपीपी के सात विधायक हैं।
यह है मणिपुर विधानसभा में सीटों का गणित
मणिपुर में विधानसभा की कुल 60 सीटें हैं जिसमें बहुमत के लिए 31 सीटों की जरूरत होती है। 2022 के चुनाव में भाजपा को 32, कांग्रेस को 5, जदयू को 6, नागा पीपुल्स फ्रंट को 5 और एनपीपी को 7 सीटें मिली थीं। वहीं कुकी पीपुल्स एलायंस को 2 सीटें मिली थीं और 3 सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशियों ने कब्जा जमाया था। जदयू के 6 में से 5 विधायक औपचारिक रूप से भाजपा में शामिल हो गए थे, जिससे विधानसभा में भाजपा के पास कुल 37 सीटें हो गईं, जोकि बहुमत से अधिक है।
बहुमत के बाद भी शाह की चिन्ता क्या है?
विधानसभा में बहुमत होने के बाद भी भाजपा की चिन्ता का कारण मणिपुर हालात पर उसके विधायकों का नाराज होना है। बताया जाता है कि भाजपा के ही सात कुकी विधायक नाराज चल रहे हैं और अगर बहुमत सिद्ध करने की बारी आई तो वे पार्टी का साथ छोड़ सकते हैं। मणिपुर में लंबे समय से हालत बेकाबू हैं, लेकिन केंद्र में भाजपा की सरकार होने के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। शाह की चिन्ता यही है कि कैसे भी करके मणिपुर में अपनी सरकार को बचाया जाए इसलिए वे महाराष्ट्र की चिन्ता छोड़ ताबड़तोड़ बैठकें करने में जुट गए।
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