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डॉ. अर्पण जैन 'अविचल', लेखक व कवि (मध्यप्रदेश)
हिन्दी स्वयं को तब गौरवान्वित महसूस करती है जब उसकी कोख से प्रेमचंद जैसे लाल जन्मा करते हैं। हिन्दी तब आह्लादित होती जब धनपत रॉय श्रीवास्तव नाम का लाड़ला बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के द्वारा उपन्यास सम्राट की पहचान पाता है।
डॉ. अर्पण जैन 'अविचल'
जो बूढ़ी काकी की भूख समझाए, जो गोदान की चिंता जताए, जो ईदगाह का महत्त्व भी बता जाए, जो अलगू और जुम्मन का प्रेम दर्शाए, जो अग्नि समाधि और अनाथ लड़की की बात करे, जो अमावस्या की रात्रि को आख़िरी तोहफ़ा कह दे, जो आत्माराम की आप बीती सुनाए, जो नमक के दरोगा की ज़बानी कहे, जो लिखे तो शब्द ख़ुद उसे गले लगाने को लालायित हो जाए, जो कलम उठाए तो लमही बन जाए, ऐसे हिन्दी कथा संसार के अजेय नायक का नाम मुंशी प्रेमचंद हुआ करता है।
हिन्दी स्वयं को तब गौरवान्वित महसूस करती है जब उसकी कोख से प्रेमचंद जैसे लाल जन्मा करते हैं। हिन्दी तब आह्लादित होती जब धनपत रॉय श्रीवास्तव नाम का लाड़ला बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के द्वारा उपन्यास सम्राट की पहचान पाता है।
निश्चित तौर पर तत्कालीन साहित्यिक जगत ने कहे या फिर आज भी जो सत्य नहीं जानते, बल्कि खोखले तर्कों में खोए रहने वाले लोगों की आलोचनाओं का शिखर कलश बने उस अलौकिक व्यक्तिव का या कहें किरदार का नाम प्रेमचंद है।
सदियों और शताब्दियों में ऐसे किसी नायक का जन्म होता है, वो किरदार में ख़ुद को ढालकर, जी कर और लिखकर उस किरदार को भी अमरत्व का पैना तमगा प्रदान करने का सामर्थ्य रखता है।
सैकड़ों कहानियों को ख़ुद में जी कर उन कहानियों को सदा-सदा के लिए जनमत के मस्तिष्क केंद्र में अंकित कर देना, फिर चिर काल तक स्मृतियों का दस्तावेज़ बना जाना, यदि कहानियों में कोई बख़ूबी कर पाया तो वह शख़्स प्रेमचंद के सिवा दूसरा अब तक कोई नज़रों के सामने भी नहीं आया।
भारत के लमही गाँव में माँ आनंदी देवी की कुक्षी से व पिता मुंशी अजायबराय के कुलदीपक के रूप में जन्म लेने वाले कथा दृष्टि के महापात्र मुंशी प्रेमचंद पर जितना लिखो, सब सूर्य को दीपक दिखाना ही माना जाएगा।
प्रसंग भी सेवासदन के महानायक की जन्म जयंती के निमित्त अद्भुत बना हुआ है, जो हम सबके लिए गर्वानुभूति का कारक है।
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