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अरविंद जयतिलक, वरिष्ठ पत्रकार
दुर्भाग्यपूर्ण यह कि अस्पताल सिर्फ सुरक्षा व्यवस्था को लेकर ही उदासीन नहीं हैं। अब तो यहां किस्म-किस्म के गोरखधंधे भी उजागर होने लगे हैं। कई बार तो निजी अस्पतालों से नवजात बच्चों की चोरी से लेकर मानव अंगों की तस्करी का मामला अखबारों में सुर्खियां बनता है।
उत्तर प्रदेश राज्य के झांसी जिले की महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में स्पेशल न्यू बोर्न यूनिट में लगी भीषण आग में 10 बच्चों की दर्दनाक मौत दुखद तो है ही साथ ही अस्पतालों में सुरक्षा को लेकर व्याप्त खामियां और घोर लापरवाही को भी रेखांकित करने वाला है। आग की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सभी बच्चे अस्सी फीसदी जले पाए गए और उनकी हड्डियां तक निकल आई थी। आग बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड की आधा दर्जन गाड़ियों को बुलाना पड़ा तब जाकर आग पर काबू पाया गया। अस्पताल के वार्ड की खिड़कियों को तोड़कर 39 बच्चों को सुरक्षित बाहर निकाला गया।
बताया जा रहा है कि ऑक्सीजन कंसट्रेटर में स्पार्किंग के चलते लगी आग के कारण यह हादसा हुआ। चारो ओर धुंआ भर गया जिससे स्पेशल न्यू बोर्न यूनिट में रखे गए बच्चों को बाहर निकालना मुश्किल हो गया। खुलासा हुआ है कि वहां पर रखा गया अग्निशमन यंत्र चार वर्ष पहले ही एक्सपायर हो चुका था। अगर अग्निशमन यंत्र एक्सपायर नहीं होता तो आग पर नियंत्रण पाना आसान होता और दस शिशुओं की जिंदगी आग की भेंट नहीं चढ़ती। अब बड़ा सवाल यह है कि क्या इस लापरवाही के लिए जिम्मेदार लोगों को कड़ी सजा मिलेगी? अच्छी बात है कि इस हादसे की जांच की जिम्मेदारी आईबी को सौंपी गई है। अब आईबी की जांच से ही स्पष्ट होगा कि आखिर आग कैसे लगी? घटना लापरवाही का नतीजा है या किसी साजिश का हिस्सा? बहरहाल मौजू सवाल यह है आखिर अस्पतालों को आग की लपटों से कैसे बचाया जाए। बेशक केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा पीड़ितों को मुआवजा देना अच्छी बात है। लेकिन यह पर्याप्त नहीं कि सरकारें मृतकों और घायलों के परिजनों को मुआवजा थमाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ ले। यह एक किस्म से अपनी नाकामी छिपाने का तरीका भर है।
सरकारों को सुनिश्चित करना होगा कि अस्पताल एवं अन्य सार्वजनिक स्थल आग की भेंट न चढ़े। उनकी सुरक्षा की पुख्ता इंतजाम हो। ऐसा इसलिए कि अस्पतालों एवं अन्य स्थलों पर आग लगने की घटनाएं निरंतर बढ़ रही हैं। शायद ही कोई वर्ष गुजरता हो जब अस्पतालों में आग लगने के कारण मरीजों की मौत की खबर सुर्खियां न बनती हों। सवाल लाजिमी है कि जब अस्पताल ही सुरक्षित व सुविधाओं से लैस नहीं होंगे तो भला वहां काम करने वाले कर्मचारी, डॉक्टर और मरीज सुरक्षित कैसे रह पाएंगे। गौर करें तो यह पहली बार नहीं है जब किसी अस्पताल में लगी आग में जिंदगी खाक हुई है। याद होगा उत्तर प्रदेश राज्य की ही राजधानी लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज (केजीएमयू) के ट्रामा सेंटर में शार्ट सर्किट से लगी आग में छः मरीजों की दर्दनाक मौत हुई थी। इसी तरह गुजरात राज्य के अहमदाबाद के निजी अस्पताल में लगी भीषण आग में आठ मरीजों की दर्दनाक मौत हुई। उस अस्पताल में भर्ती मरीज कोरोना से पीड़ित थे और अपनी जिंदगी की जंग लड़ रहे थे। लेकिन अस्पताल की बदइंतजामी के कारण लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। गत वर्ष ओडिसा की राजधानी भुवनेश्वर स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज ऐंड एसयूएम हॉस्पिटल के आईसीयू वार्ड में भी शार्ट सर्किट से आग लगी थी जिसमें दो दर्जन से अधिक लोगों की जान गयी। इसी तरह कोलकाता के नामी-गिरामी निजी अस्पताल एडवांस मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (आमरी) में भी दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से आग लग गयी थी जिसमें 90 से अधिक लोगों की जान गयी। याद होगा अभी गत वर्ष पहले ही मध्यप्रदेश राज्य के सतना जिले के एक निजी अस्पताल में भीषण आग की घटना में 32 नवजात शिशु खाक होते-होते बचे।
गौर करें तो केवल अस्पताल ही नहीं बल्कि काम्पलेक्स, विवाह मंडप, रेस्त्रां, होटल, कोचिंग संस्थान, मंदिर, मेला स्थल, इमारत, स्कूल, रेलवे स्टेशन एवं अन्य सार्वजनिक स्थल कोई भी सुरक्षित नहीं हैं। हर जगह आग की लपटों से जिंदगी झुलस रही है। इन घटनाओं में एक बात समान रुप से देखने को मिल रही है कि कहीं भी आग से बचाव के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। याद होगा गत वर्ष पहले गुजरात राज्य के सूरत की तक्षशिला कॉम्पलेक्स में भीषण आग लगी थी जिसमें 23 लोगों की मौत हुई। वहां भी आग बुझाने का समुचित इंतजाम नहीं था। अभी गत वर्ष ही राजकोट के टीआरपी गेम जोन अग्निकांड में कई बच्चों की जान गई। गर्मी की छुट्टी के कारण बच्चे वहां खेलने गए थे। लेकिन उनकी जिंदगी आग की लपटों की भेंट चढ़ गई। याद होगा दिसंबर 1995 में हरियाणा के मंडी डबवाली में स्कूल के एक कार्यक्रम के दौरान पंडाल में आग लगने से तकरीबन 442 बच्चों की मौत हुई थी। वहां भी आग बुझाने का पुख्ता इंतजाम नहीं था। इसी तरह 6 जुलाई, 2004 को तमिलनाडु के कुंभकोणम जिले में लगी आग से 91 स्कूली बच्चों ने दम तोड़ा। सच तो यह है कि आग की लपटों से अब कोई भी स्थान सुरक्षित नहीं है। कहीं भी आग से निपटने के समुचित बंदोबस्त नहीं है।
गत वर्ष ही देश की राजधानी दिल्ली के मुंडका इलाके में निर्मित तीन मंजिला व्यवसायिक इमारत में लगी भीषण आग में 27 लोगों की मौत हुई। 2019 में रानी झांसी रोड पर अनाज मंडी में लगी भीषण आग में 43 लोगों की जान गई। बाहरी दिल्ली के औद्योगिक क्षेत्र के सेक्टर पंाच में एक इमारत में अवैध रुप से चल रही पटाखे की फैक्टरी में भीषण आग में तकरीबन 17 लोगों की जान गई। याद होगा गत वर्ष पहले दिल्ली में ही किन्नरों के महासम्मेलन के दौरान पंडाल में लगी आग से 16 किन्नरों की जान जा चुकी है। 31 मई 1999 को दिल्ली के ही लालकुंआ स्थित हमदर्द दवाखाना में केमिकल से लगी आग में 16 लोगों को जान गई। याद होगा 13 जून 1997 को दिल्ली के उपहार सिनेमा हॉल में आग लगने से 59 लोगों की मौत हुई। मध्य मुंबई के लोअर परेल इलाके में निर्मित दो रेस्टोरेंट कम पब में अचानक भड़की आग में 14 लोगों की जान गई। गत वर्ष पहले केरल के कोल्लम में पुत्तिंगल देवी मंदिर में आतिशबाजी से लगी आग में एक सैकड़ा से अधिक लोगों की जान गयी।
जहां तक अस्पतालों का सवाल है तो उचित होगा कि सभी राज्य सरकारें सरकारी अस्पतालों को बेहतर सुरक्षा से लैस करने के साथ-साथ सभी सुरक्षा विहिन गैर-जिम्मेदार निजी अस्पतालों को भी पुख्ता सुरक्षा इंतजामों से लैस करें। अगर जरुरत पड़े तो इसके लिए कड़े कानून भी बनाएं। नियमों का अनुपालन न करने वाले अस्पतालो के संचालकों को दंडित करें। ऐसा इसलिए कि अस्पतालों में आग लगने की घटनाओं में कमी के बजाए निरंतर वृद्धि हो रही है। कई सर्वे से उद्घाटित हो चुका है कि अस्पताल चाहे सरकारी हों या निजी सभी सुरक्षा व्यवस्था को लेकर आंख बंद किए हुए हैं। नतीजा मरीजों की जिंदगी भगवान भरोसे है। ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि देश के सभी सरकारी और निजी अस्पताल आग से बचाव के लिए सुरक्षा उपकरणों की व्यवस्था के साथ जरुरत पड़ने पर उसका इस्तेमाल करने के लिए प्रशिक्षित कर्मियों की अतिशीध्र नियुक्ति करें।
अकसर देखा जाता है कि अस्पतालों में आग से बचाव के लिए सुरक्षा उपकरणों तो होते हैं लेकिन आग लगने पर बचाव के लिए उस उपकरण का इस्तेमाल नहीं हो पाता है। उसका कारण है कि अस्पतालों में आग बुझाने वाले प्रशिक्षित कर्मी नहीं होते हैं। अगर समय रहते इन उपकरणों का इस्तेमाल हो तो लोगों की जिंदगी बचायी जा सकती है। दुर्भाग्यपूर्ण यह कि अस्पताल सिर्फ सुरक्षा व्यवस्था को लेकर ही उदासीन नहीं हैं। अब तो यहां किस्म-किस्म के गोरखधंधे भी उजागर होने लगे हैं। कई बार तो निजी अस्पतालों से नवजात बच्चों की चोरी से लेकर मानव अंगों की तस्करी का मामला अखबारों में सुर्खियां बनता है। अब तो अस्पताल सेवा का केंद्र बनने के बजाए अवैध धन कमाने का केंद्र के रुप में जाने-पहचाने लगे हैं। यह स्थिति बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और मानवता को शर्मसार करने वाला है।
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