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डीआईजी पंजीयन बालकृष्ण मोरे के ट्रांसफर पर उठ रहे कई सवाल, आखिर किसके कहने पर जारी हुआ आदेश

आईजी पंजीयन पर उपमुख्यमंत्री को गलत जानकारी देकर ट्रांसफर कराने के आरोप

भोपाल। सरकार ट्रांसफर को लेकर चाहे लाख सख्त नियम बना ले, लेकिन मंत्री कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेते हैं। गलत जानकारी देकर अच्छे अधिकारियों के ट्रांसफर का सिलसिला अभी भी जारी है। इसका ताजा उदाहरण डीआईजी पंजीयन बालकृष्ण मोरे का ट्रांसफर है। बताया जाता है कि इसमें अधिकारियों ने षड्यंत्रपूर्वक उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा से यह ट्रांसफर करवा लिया है।

उल्लेखनीय है कि राज्य शासन ने आदेश जारी कर बालकृष्ण मोरे डीआईजी पंजीयन इंदौर का ट्रांसफर भोपाल कर दिया। उनके स्थान पर उमाशंकर वाजपेयी को भेजा गया है, जिन्हें पहले असफल रहने के कारण इंदौर से स्थानांतरित किया गया था। यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर सरकार किस मापदंड पर ट्रांसफर कर रही है, क्योंकि मोरे आरएसएस और भाजपा के भी निकट माने जाते हैं। शासन के प्रति वफ़ादार, स्वच्छ छवि वाले अधिकारी हैं।

आईजी पंजीयन की भूमिका पर उठ रहे सवाल

सूत्र बताते हैं कि उनके ट्रांसफऱ् में मुख्य भूमिका आईजी पंजीयन एम शेलवेंद्रन और अमरेश नायडू की रही है। इन दोनों ने उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा को गलत जानकारी दी। एम शेलवेंद्रन आईजी पंजीयन रहे हैं, उन्होंने गलत तरीक़े से पद नहीं होने के वावज़ूद अमरेश नायडू की पोस्टिंग इंदौर करा दी थी और चार्ज भी दिलवाया था। नायडू हमेशा विवादों में रहे हैं, लेकिन  एम शेलवेंद्रन का सपोर्ट उनको हमेशा रहा है।

मोरे के कारण अन्य अफसरों की नहीं चल रही थी

बताया जाता है कि मोरे के रहते नायडू और अन्य दागी अफसरों के मंसूबे कामयाब नहीं हो रहे थे। इसलिए शासन को गलत जानकारी देकर उमाशंकर वाजपेयी जैसे असफल अधिकारी को इंदौर भेजा गया है। जब पंजीयन विभाग में संपदा वन लागू किया जाना था, तो उमाशंकर वाजपेयी को इंदौर से भगाया गया था। 2016 में वाजपेयी ई-रजिस्ट्रेशन को लागू कराने में असफल रहे थे। इसलिए वाजपेयी को हटाकर मोरे को इंदौर पदस्थ किया गया था। यहां सवाल यह है कि जो अधिकारी संपदा वन में फेल रहा, उसे संपदा टू में कैसे लाया जा रहा है।

मोरे के कार्यकाल में विभाग को फायदा ही फायदा

मोरे ने इंदौर में बतौर सीनियर रजिस्ट्रार इंदौर 2016 में जॉइन किया था। संपदा 1.0 को लागू करने में आ रही कठिनाइयों को दूर करके व्यवस्था को पटरी पर लाने की ज़िम्मेदारी दी गई थी, जिसे मोरे ने बखूबी निभाया। मोरे के कार्यकाल में इंदौर का राजस्व 800 करोड़ से बढ़कर 2400 करोड़ तक पहुँच गया। कोरोना के समय में मोरे के नेतृत्व में पंजीयन विभाग ने बेहतरीन काम किया।

नायडू और मिश्रा की जांच कर रहे थे मोरे

मोरे के ट्रांसफर के पीछे विभाग के दागी अधिकारियों की भूमिका बताई जा रही है। सूत्र बताते हैं कि भोपाल से इंदौर ट्रांसफ़र हुए उमाशंकर वाजपेयी, इंदौर के रजिस्ट्रार अमरेश नायडू और चक्रपाणि मिश्रा का इसमें हाथ है। नायडू और मिश्रा के विरुद्ध भ्रष्टाचार की जाँच मोरे कर रहे थे।

 

 

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