आम बोलचाल की भाषा में 9 महीने के समय को गर्भकाल कहा जाता है। इसी अवधि के बाद बच्चे का जन्म होता है। इस अवधि में बच्चे के भविष्य, संस्कार, स्वास्थ्य आदि भी तय हो जाते हैं। मध्यप्रदेश में सीएम डॉ.मोहन यादव अपने कार्यकाल के 9 महीने पूरे कर चुके हैं और यह साफ तौर पर कहा जा सकता है कि एक नए मध्यप्रदेश का जन्म हो रहा है। वह मध्यप्रदेश जो भविष्य में तरक्की के पथ पर आगे ही बढ़ता जाएगा। रोजगार, उद्योग, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि हर क्षेत्र में इसे कुपोषण से बाहर लाने की कोशिश हुई है।
13 दिसंबर 2023 को डॉ.मोहन यादव ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। अभी काम शुरू ही किया था कि 16 मार्च 2024 को लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लग गई, जो 6 जून को हटी। इस बीच सरकारी घोषणाएं और नए कामों पर प्रतिबंध लग गया, लेकिन सीएम यादव ने इस अवधि का फायदा उठाते हुए पूरे मध्यप्रदेश का खाका अपने दिमाग में फिट कर लिया। इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर राजनीतिक व प्रशासनिक स्तर पर उन्होंने मध्यप्रदेश को समझ लिया था। यही वजह है कि जैसे ही लोकसभा चुनाव की आचार संहिता खत्म हुई, विकास कार्यों को पंख लग गए।
सीएम यादव ने इस बीच कई ऐसी बीमारियों का इलाज शुरू कर दिया, जिसकी ओर प्रदेश के किसी दूसरे मुखिया का ध्यान गया ही नहीं था। इसका मतलब यह नहीं था कि उन्होंने सरकार की पहले से चली आ रही योजनाओं को ठंडे बस्ते में डाल दिया। वे भी उसी रफ्तार से चलती रहीं, जिस रूप में नई योजनाओं को लाया गया।
सबसे बड़ी बात सीएम यादव ने आम जनता को यह एहसास कराया कि यह सरकार उनकी है। आम जनता की न केवल बात सुनी जाएगी, बल्कि उस पर अमल भी होगा। शुरू-शुरू में जब उन्होंने गंदगी, ध्वनि प्रदूषण, अतिक्रमण आदि पर कुछ फैसले लिए तो भाजपा के ही कुछ नेता कहने लगे थे कि यह शुरुआती हवाबाजी है, एक्शन कुछ नहीं होगा। यहां तक कहा गया कि इनकी नियुक्ति सिर्फ लोकसभा चुनाव में यादव वोटों का फायदा उठाने के लिए की गई है। यह सारी बातें तब हवा-हवाई साबित हुईं, जब धरातल पर सख्त एक्शन होने लगा। और ऐसा कहने वाले नेता भी माथा और कोना पकड़कर बैठ गए।
सीएम यादव के हर फैसले के पीछे आम जनता का चेहरा छुपा रहता है। चाहे साइबर तहसील का मामला हो या हाल ही में लिया गया प्रशासनिक पुनर्गठन आयोग का फैसला आम जनता की परेशानियों को सरल करने के लिए ही लिया गया है। वर्षों से दर-दर की ठोकरें खा रहे हुकुमचंद मिल के मजदूरों के खातों में सीएम यादव के प्रयासों से ही पैसा आया।
नई सरकार बनने के बाद मध्यप्रदेश भाजपा में बहुत उथल-पुथल मची थी। कांग्रेस से नए आए नेताओं के कारण भी भाजपा नेता व कार्यकर्ता परेशान थे। कई जिलों में नए समीकरण बने और कुछ जिलों में पुराने मठाधीश सत्ता-संगठन पर कब्जे में जुट गए। सीएम यादव ने आंख-कान खुला रखा। सबको सुना, परिस्थितियों को समझा और उस हिसाब से फैसले भी लिए। इंदौर जिले का प्रभार लेना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
वैसे तो सीएम यादव से पूरे प्रदेश को उम्मीद है और वे इस पर खरा भी उतर रहे हैं, लेकिन हमारे इंदौर और उज्जैन के लिए जैसे लॉटरी ही लग गई है। इदौर-मनमाड़ रेल लाइन के साथ ही इंदौर-उज्जैन मेट्रो से इस क्षेत्र के विकास को चार चांद लग जाएंगे।
सीएम साहब, प्रदेश की जनता आपकी तरफ आस लगाए बैठी है। ऐसे ही दृढ़ता से प्रदेश के विकास की इबारत लिखते जाइए। महाकाल की कृपा के साथ जनता की दुआएं भी आपके साथ हैं…
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