इंदौर। मध्यप्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री आरिफ अकील का सोमवार सुबह निधन हो गया है। उन्होंने 72 साल की उम्र में अपनी आखिरी सांस ली। उन्हे सीने में दर्द के चलते भोपाल के एक अपोलो सेज अस्पताल में भर्ती कराया गया था। आरिफ अकील अपने साथ मध्यप्रदेश की राजनीति का एक युग ले गए। करीब चार दशको तक मध्यप्रदेश की राजनीति में उनका दबदबा रहा।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल की उत्तर विधानसभा से लगातार 40 साल तक सियासत करने वाले आरिफ अकील कांग्रेस शासनकाल में दो बार मंत्री रहे हैं। एक अलग अंदाज की राजनीति करने वाले अकील ने अल्पसंख्यक कल्याण, जेल, खाद्य जैसे महत्वपूर्ण विभागों का जिम्मा संभाला। उत्तर विधानसभा पर एकक्षत्र साम्राज्य स्थापित करने वाले अकील ने सियासत के शुरुआती दौर में जनता दल से भी चुनाव लड़ा। इसके बाद कांग्रेस के साथ सियासी सीढ़ियां चढ़ते हुए उन्होंने भाजपा के कई दिग्गजों को चुनावी मैदान में परास्त किया। भाजपा शासनकाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा उत्तर विधानसभा को गोद ले लिए जाने का असर भी अकील के मजबूत किले को नहीं डिगा पाई।
छात्र राजनीति से शुरू किया था सफर
कांग्रेस के इस दिग्गज नेता राजनीति की शुरुआत छात्र जीवन से की थी। सैफिया कॉलेज की सियासत में लंबे समय तक उनका दबदबा कायम रहा। कॉलेजों में छात्र संघ चुनाव पद्धति जारी रहने तक उनका यह जलवा कायम ही रहा। इसके बाद अकील जब विधानसभा पहुंचे तो पीछे मुड़कर नहीं देखा।
अकील के पास डिग्रियों की भरमार
आरिफ अकील के हिस्से शैक्षणिक डिग्रियों की भरमार रही है। उन्होंने कई स्नातकोत्तर डिग्री के साथ विधि की पढ़ाई भी की थी। पिछली कांग्रेस सरकार में शामिल रहे विधायक मंत्रियों में सर्वाधिक डिग्रियां रखने वाले अकील ही थे।
कांग्रेस में रहते हुए भाजपा से मजबूत रिश्ते
आरिफ अकील कांग्रेस के उन चुनिंदा नेताओं में शुमार माने जाते रहे हैं, जिनकी अपनी पार्टी में मजबूत पकड़ के साथ भाजपा में भी समान पहुंच रही है। पूर्व मुख्यमंत्री स्व बाबूलाल गौर और आरिफ अकील का दोस्ताना काफी मशहूर रहा है। कहा जाता है कि दोनों मित्र चुनाव के दौरान एक दूसरे के क्षेत्र में सहयोग भी करते रहे हैं।
1990 में निर्दलीय लड़े और जीते
उनका राजनीतिक सफ़र काफी लंबा और प्रभावशाली रहा। उन्होंने 1990 में पहली बार भोपाल उत्तर विधानसभा सीट से निर्दलीय उमीदवार के रूप में जीत हासिल की थी। हालांकि, 1993 में उन्हें भाजपा के रमेश शर्मा से हार का सामना करना पड़ा था। 1998 के बाद से आरिफ अकील ने इस सीट पर अपना एकछत्र राज कायम कर लिया। वे यहां से लगातार छह बार विधायक चुने गए। इस दौरान वे दो बार मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री भी रहे।
तबीतयत खराब हुई तो बेटे को सौंपी विरासत
2023 के विधानसभा चुनाव में तबीयत खराब होने के कारण उन्होंने राजनीति से विराम ले लिया था। तब उनकी जगह उनके बेटे आतिफ अकील को मैदान में उतारा गया था। कांग्रेस के टिकट पर उन्होंने जीत हासिल की और वर्तमान में विधायक हैं।
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