इंदौर। पिछले कुछ समय इंदौर के सबसे पॉश और महंगे इलाके में एकड़ों में फैले संभ्रांतों के यशवंत क्रिकेट क्लब उर्फ यशवंत क्लब को लेकर चर्चाएं गर्म हैं। एक कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया तो क्लब के कर्ताधर्ता उसके पीछे पिल पड़े। बात थाना-पुलिस, कोर्ट-कचहरी तक पहुंच गई। अब सवाल यह है कि यशवंत क्लब को लेकर सवाल क्यों उठाए जा रहे। संभ्रांतों के इस क्लब से शहर या आम आदमी का क्या वास्ता?
सीएम से लेकर कई विभागों तक यशवंत क्लब की शिकायत पहुंचाने वाले कांग्रेस नेता राकेश सिंह यादव से ही हमने पूछ लिया कि आखिर माजरा क्या है? क्यों बड़े लोगों के इस क्लब के पीछे पड़े हो, इससे शहर का क्या लेना-देना? यादव ने बताया कि आजादी के बाद होलकर महाराजा ने यह जमीन क्रिकेट के लिए दी थी। उस समय सीके नायडू भारतीय टीम के कप्तान बने थे। वे यहां प्रैक्टिस भी करते थे और महाराजा की सोच थी कि इंग्लैंड से आए इस नए खेल के लिए यहां खिलाड़ी तैयार किए जाएंगे। अब क्रिकेट के लिए मैदान तो है, लेकिन उस पर कुछ और ही खेल होता है।
कौन सी ग्रेड में है क्लब की क्रिकेट टीम?
कांग्रेस नेता ने कहा कि कुछ समय तक क्रिकेट चला भी, लेकिन क्या यशवंत क्लब के वर्तमान कर्ताधर्ता यह बता सकते हैं कि उनके पास अभी कौन सी टीम है या फिर उनके क्लब का कौन सा खिलाड़ी इंदौर, प्रदेश, देश के किस टीम में खेल रहा है? बताया जा रहा है कि कई साल पहले इस क्लब की टीम सी ग्रेड में थी, लेकिन इसके बाद से तो गायब ही हो गई। ए ग्रेड तो टीम के आसपास भी नहीं फटकता। हां, क्रिकेट का मैदान जरूर क्लब के कब्जे में है।
साढ़े पांच एकड़ जमीन पर जमा लिया कब्जा
राकेश सिंह यादव बताते हैं कि वर्ष 1952-53 में होलकर महाराज ने क्रिकेट के इस क्लब के लिए ढाई-तीन एकड़ जमीन दी थी। जिस पर बिल्डिंग आदि बनी है। धीरे-धीरे आसपास की पूरी जमीन भी कब्जे में आ गई। इस तरह रेसकोर्स रोड जैसे महंगे इलाके के करीब साढ़े पांच एकड़ जमीन पर कब्जा कर लिया गया। आगे जब नजूल विभाग से लीज-डीड हुई तो उसमें से एरिया गायब कर दिया गया।
सोसायटी के रजिस्ट्रेशन में बार का जिक्र नहीं
राकेश सिंह यादव बताते हैं कि यह क्लब फर्म एंड सोसायटी से रजिस्टर्ड है। उसमें भी कहीं यह जिक्र नहीं है कि हम इसमें बार एंड रेस्टोरेंट खोलेंगे। आबकारी का लाइसेंस लेने के लिए इस क्लब से क्रिकेट शब्द उड़ा दिया गया। यशवंत क्लब के नाम से ही फूड लाइसेंस भी लिया गया। सवाल यह है कि क्रिकेट के लिए दी गई इस जमीन पर क्या सिर्फ बार एंड रेस्टोरेंट ही चलेगा।
छह रुपए की सालाना लीज पर हजारों करोड़ की जमीन
राकेश सिंह यादव यह सवाल उठाते हैं कि इंदौर शहर में जहां जमीनों की इतनी किल्लत है, तब छह रुपए सालाना लीज पर करीब 10 हजार करोड़ की इस जमीन का उपयोग सिर्फ ऐशे आराम के लिए क्यों होने दिया जा रहा? वह भी ऐसा क्लब में जिसमें लाखों रुपए लेकर सदस्य बनाए जाते हैं और सिर्फ चंद लोग ही इसका उपयोग कर पाते हैं। यादव ने सरकार से मांग की है कि इस क्लब का अधिग्रहण कर लिया जाए। उनका कहना है कि अगर इस जमीन का कब्जा नगर निगम को दे दिया जाए तो वह यहां हाईराइज बिल्डिंग बनाकर अपनी माली हालत सुधार कर शहर का भला कर सकती है।
इस क्लब के नए राजा-महाराजा कौन हैं?
राकेश सिंह यादव यह भी सवाल उठाते हैं कि वर्तमान में इस क्लब पर कब्जा कर बैठे नए राजा-महाराजा कौन हैं? उनका शहर से क्या जुड़ाव है और वे शहरहित के कौन से काम कर रहे हैं? क्लब में सदस्य बनाने के लिए जो फर्जीवाड़ा होता है वह जगजाहिर है। क्लब में ओबीसी, दलित, आदिवासी या मुसलमान को भी प्रवेश नहीं मिलता। यादव बताते हैं कि सदस्य बनाने में भी यहां बड़ा खेल होता है। सीधे बनाने पर 25 लाख रुपए की मांग की जाती है। फिर यह सुझाव दिया जाता है कि कोई बंद पड़ी कंपनी खरीदकर डायरेक्टर बन जाओ फिर 15 लाख रुपए में बना देंगे। यादव बताते हैं कि इसके बाद शैल कंपनियों के माध्यम से बहुत बड़ा खेल होता है। जांच की जाए तो बहुत बड़ी गड़बड़ी पकड़ी जा सकती है। दिल्ली के जिमखाना क्लब में भी ऐसा ही हाल था, वहां जांच हुई तो पता चला। सरकार को चाहिए कि क्लब की कमेटी भंग कर रिसीवर नियुक्त कर दे।
रात दो बजे तक नशे का कारोबार
यादव के अनुसार आबकारी विभाग सयाजी क्लब से लेकर अन्य क्लबों में महीने में एक-दो बार जांच कर आता है। लेकिन, इस क्लब में पिछले 30 साल से कोई जांच नहीं हुई। यहां खुलेआम दो बजे तक नशे का कारोबार होता है, लेकिन कथित संभ्रांत लोगों के क्लब में कोई विभाग नहीं झांकता। आखिर विभागों को किसका डर और जब यहां सब कुछ ठीक चल रहा है तो क्लब के कर्ताधर्ताओं और सदस्यों को किस बात का डर?
बच्चों को खेलने के लिए मिले क्लब का ग्राउंड
इंदौर डिविजन क्रिकेट एसोसिएशन और एमपीसीए के कुछ पदाधिकारियों और वरिष्ठ सदस्यों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि वर्षों से यशवंत क्लब की टीम ए ग्रेड में नहीं है। यहां कोई टूर्नामेंट भी नहीं होते और न ही कोई ऐसी गतिविधि होती है, जिससे यहां से क्रिकेट खिलाड़ी निकलें। इनका कहना है कि जब शहर के बीचोंबीच इतना बड़ा ग्राउंड है तो उसे बच्चों को खेलने के लिए दिया जाना चाहिए। आखिर खेल के नाम पर ही तो ग्राउंड लिया गया है।
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