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संविधान से नहीं हटेगा समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिकाएं

शुक्रवार को ही पूरी हो गई थी सुनवाई, आज सुनाया गया फैसला

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान से धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द हटाने की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है। ये याचिकाएं पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन आदि ने दायर की थी। सीजेआई ने कहा कि 1976 में संविधान संशोधन के जरिए जोड़े गए इन शब्दों से संविधान पर कोई फर्क नहीं पड़ता।

उल्लेखनीय है कि कि साल 1976 में संविधान संशोधन के तहत धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी जैसे शब्दों को जोड़ा गया था। इसे हटाने के लिए दायर याचिकाओं पर पिछले शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई थी, लेकिन फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। सोमवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि संसद की संशोधन शक्ति प्रस्तावना तक भी फैली हुई है। प्रस्तावना को अपनाने की तारीख संसद की प्रस्तावना में संशोधन करने की शक्ति को सीमित नहीं करती है। इस आधार पर, याचिकाकर्ता के तर्क को खारिज कर दिया गया। सीजेआई ने सुनवाई के दौरान कहा कि इतने साल हो गए हैं, अब इस मुद्दे को क्यों उठाया जा रहा है।

सीजेआई खन्ना ने 22 नवंबर को सुनवाई के दौरान कहा था कि भारतीय अर्थ में समाजवादी होना केवल कल्याणकारी राज्य के रूप में समझा जाता है। भारत में समाजवाद को समझने का तरीका अन्य देशों से बहुत अलग है। हमारे संदर्भ में, समाजवाद का मुख्य रूप से अर्थ कल्याणकारी राज्य है। इसने कभी भी निजी क्षेत्र को नहीं रोका है जो अच्छी तरह से फल-फूल रहा है। हम सभी को इससे लाभ हुआ है। समाजवाद शब्द का प्रयोग एक अलग संदर्भ में किया जाता है, जिसका अर्थ है कि राज्य एक कल्याणकारी राज्य है और उसे लोगों के कल्याण के लिए खड़ा होना चाहिए और अवसरों की समानता प्रदान करनी चाहिए।

 

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