इंदौर। भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति रतन टाटा हम सबको टा…टा…कहकर चले गए। उनके निधन से जहां पूरे उद्योग जगत में शोक की लहर है, वहीं आम आदमी की आंखें भी भर आई हैं। आम आदमी के बारे में जो सोच रतन टाटा की थी, वह कम से कम किसी उद्योगपति की तो नहीं ही हो सकती है। रतन टाटा न तो राजनीति में थे ना ही उन्हें किसी तरह से जनता के समर्थन की जरूरत थी, फिर भी उन्हें आम आदमी के सपनों को पूरा करने लिए नैनो कार की परिकल्पना की। इतना ही नहीं आम आदमी को ध्यान में रखते हुए ही उनके सारे प्रोडक्ट्स में क्वालिटी की गारंटी रहती थी। आज भी गांव-गांव में लोग कहते हैं-टाटा मतलब मजबूती की गारंटी।
वह किस्सा सबको याद होगा जब उन्होंने स्कूटर पर सवार परिवार को बारिश में भीगते हुए देख नैनो कार का सपना देखा। रतन टाटा ने अपने इस सपने को लोगों से साझा भी किया था। टाटा ने एक बार इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट में लिखा था कि आर्किटेक्चर स्कूल से होने का फायदा यह था कि मैं खाली समय में डूडल बनाता था। उन्होंने लिखा था कि मैंने खाली समय में डूडल बनाते समय यह सोचता था कि मोटरसाइकिल ही अगर ज्यादा सुरक्षित हो जाए तो कैसा रहेगा. ऐसा सोचते-सोचते मैंने एक कार का डूडल बनाया, जो एक बग्घी जैसा दिखता था। उसमें दरवाजे तक नहीं थे। इसके बाद मैंने सोच लिया कि मुझे ऐसे लोगों के लिए कार बनानी चाहिए और फिर लखटकिया कार टाटा नैनो बाजार में आई। साल 2009 में टाटा मोटर्स ने नैनो कार को लॉन्च कर दिया। ये देश की सबसे सस्ती कार थी।
अपनी कंपनी में ही कड़ी मेहनत से आगे बढ़े
रतन टाटा की सफलता की कहानी ने भारत की अर्थव्यवस्था को बहुत प्रभावित किया है। रतन टाटा का जन्म 1937 में प्रसिद्ध टाटा परिवार में हुआ था। 10 साल की उम्र में उनके माता-पिता अलग हो गए। बाद में उनकी दादी ने उनका पालन-पोषण किया। कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्चर और स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल करने के बाद रतन टाटा ने हार्वर्ड से एडवांस्ड मैनेजमेंट प्रोग्राम किया। 1962 में टेलको के शॉप फ्लोर पर काम करना शुरू कर दिया, जहां वह चूना पत्थर फावड़ा और ब्लास्ट फर्नेस में टीम के सदस्य थे। इसके बाद टाटा समूह के की विभिन्न कंपनियों में काम किया। अंत में 1971 में नेल्को के डायरेक्टर बने। वे कड़ी मेहनत करते रहे।
नमक से लेकर कार तक पर टाटा का नाम
टाटा एक ऐसा ब्रांड है जिसने नमक से लेकर कार तक लांच किया। 1991 में रतन टाटा ने जेआरडी टाटा से टाटा संस के चेयरमैन और टाटा ट्रस्ट के अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला। वह समय उदारीकरण का था। कई विदेशी कंपनियों का अधिग्रहण हो रहा था और टाटा ने भी टेटली, कोरस, 2.3 जगुआर लैंड रोवर, ब्रूनर मोंड, जनरल केमिकल इंडस्ट्रियल प्रोडक्ट्स आदि का अधिग्रहण किया।
भारत का सबसे बड़ा धर्मार्थ ट्रस्ट
कुछ वर्षों पहले एयर इंडिया फिर से टाटा के पास आ गई। इसकी स्थापना उनके चाचा और संरक्षक जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा ने 1932 में की थी। वे आम आदमी की हर जरूरत को पूरा करना चाहते थे और उसी सोच से आगे बढ़ते थे। टाटा ने एक बार कहा भी था कि मुझे जो सबसे बड़ी खुशी मिली है, वह है कुछ करने की कोशिश करना, हर कोई कहता है नहीं किया जा सकता। आम आदमी के प्रति भलाई का ही नतीजा है कि टाटा ट्रस्ट भारत के सबसे बड़े धर्मार्थ संगठनों में से एक है। सरकार ने उन्हें 2000 में पद्म भूषण और 2008 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया।
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