नई दिल्ली। सद्गुरु जग्गी वासुदेव को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ पुलिस जांच के आदेश पर रोक लगा दी है। इससे पहले मद्रास हाईकोर्ट ने 30 सितंबर को तमिलनाडु पुलिस को ईशा फाउंडेशन से जुड़े मामलों की जांच कर रिपोर्ट देने को कहा था। इसके बाद पुलिस जांच करने आश्रम भी पहुंच गई थी। मामले में अगली सुनवाई 18 अक्टूबर को होगी। फाउंडेशन के खिलाफ एक प्रोफेसर एस कामराज ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उनका आरोप था कि आश्रम में उनकी बेटियों लता और गीता को बंधक बनाकर रखा है।
मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को सद्गुरु ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को मद्रास हाईकोर्ट से अपने पास ट्रांसफर करते हुए तमिलनाडु पुलिस को हाईकोर्ट द्वारा मांगी गई स्टेटस रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जमा करने को कहा है। कोर्ट ने पुलिस को हाईकोर्ट के निर्देशों के पालन में आगे कोई कार्रवाई नहीं करने को भी कहा है। ईशा फाउंडेशन की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया कि दोनों लड़कियां 2009 में आश्रम में आई थीं। उस वक्त उनकी उम्र 24 और 27 साल थी। वे अपनी मर्जी से रह रही हैं। फैसले से पहले सीजेआई ने दो महिला संन्यासियों को अपने चेंबर में बुलाया था। महिला संन्यासियों ने सीजेआई को बताया कि दोनों बहनें अपनी मर्जी से हैं। उनके पिता आठ सालों से परेशान कर रहे हैं।
प्रोफेसर ने दायर की है याचिका
कोयंबटूर में तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले एस कामराज ने मद्रास हाईकोर्ट में अपनी बेटियों को अदालत में पेश करने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। सोमवार को प्रोफेसर की दोनों बेटियों ने कोर्ट में पेश होकर यह स्वीकार किया था कि वे मर्जी से ईशा फाउंडेशन में रह रही हैं। याचिका पर सुनवाई करते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के संस्थापक से पूछा था कि हम जानना चाहते हैं कि एक व्यक्ति जिसने अपनी बेटी की शादी कर दी वह दूसरों की बेटियों को संन्यासिन की तरह जीने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रहा है।
Leave Comments