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देश में और कितनी निर्भया, अब तो शर्म आती है कुछ ऐसा करो सरकार, दुष्कर्मियों की रूह कांप जाए

रेप की घटनाओं पर HBTV NEWS के न्यूज हेड हरीश फतेहचंदानी का कॉलम-सच कहता हूं

कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर के रेप-मर्डर से देश में बवाल खड़ा हो गया है। पूरे देश के डॉक्टर विरोध में उतर आए हैं। हाई कोर्ट से लेकर केंद्र सरकार तक इस पर चिन्ता दिखा रही है। राजनीति भी जमकर हो रही है। केंद्र राज्य पर और राज्य केंद्र पर आरोप-प्रत्यारोप मढ़ने में लगा है। इन सबके बीच किसी को यह चिन्ता नहीं हो रही कि आखिर इन घटनाओं को रोका कैसे जाए? कैसे भारत से दुष्कर्म जैसे कलंक को हमेशा के लिए मिटा दिया जाए।

इसी साल 16 दिसंबर को दिल्ली के निर्भया कांड की 12 वीं बरसी हम मनाएंगे। 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली 23 वर्षीय एक पैरामेडिकल छात्रा के साथ बस में हुई उस वीभत्स घटना को सुनकर आज भी रौंगटे खड़े हो जाते हैं। सरकार ने तब कड़े कानून बनाने की बात कही थी। कुछ कानूनों में सुधार भी हुए, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला।

कुछ पुराने आंकड़े हाथ लगे हैं, जो बताते हैं कि निर्भया कांड के बाद सरकार ने कोई सीख नहीं ली या फिर सरकार की सख्ती का कोई असर नहीं पड़ा। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार 2022 में भारत के 19 महानगरों में से दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ अपराध के सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए। राष्ट्रीय राजधानी में 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 14,158 मामले दर्ज किए गए, इसके बाद मुंबई (6,176) और बेंगलुरु (3,924) रहे।

अब जरा राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) के आंकड़े भी देख लेते हैं। इन आंकड़ों के अनुसार 2023 में महिलाओं के विरुद्ध अपराध की 28,811 शिकायतें दर्ज हुई हैं। इनमें बलात्कार और बलात्कार के प्रयास की शिकायतें 1,537 रहीं। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि निर्भया कांड के बाद भी हर साल रेप के केस बढ़े ही हैं। 2022 में 31516, 2021 में 31677, 2020 में 28046, 2019  में 32032 मामले दर्ज हुए।

इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि समाज से इस नासूर को खत्म करना इतना आसान नहीं और इस मुद्दे पर राजनीति करने से भी कोई लाभ नहीं। इसके लिए कानून में ऐसे बदलाव करने होंगे कि सजा का नाम सुनते ही किसी की भी रूह कांप जाए।

इसी पंद्रह अगस्त यानी गुरुवार को लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिलाओं की सुरक्षा को लेकर बात की है। इससे साफ जाहिर है कि पीएम मोदी चिन्तित हैं, लेकिन अब इस चिन्ता से आगे कुछ करना होगा।

सिर्फ खाते में पैसे डाल देने, उज्जवला योजना में गैस सिलेंडर देने से बात नहीं बनने वाली।

राजनीति छोड़िए…देश के लिए…समाज के लिए…महिलाओं के लिए सचमुच कुछ करिए सरकार…

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