नई दिल्ली। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर को लेकर सारे एग्जिट पोल के नतीजों में दोनों प्रदेश में भाजपा की करारी हार बताई गई थी। आज सुबह जब मतगणना शुरू हुई तो एग्जिट पोल सही नजर आने लगे। कांग्रेस खेमे में खुशी की लहर दौड़ पड़ी, लेकिन कुछ ही घंटें बाद क्रिकेट के टी 20 मैच की तरह सब उल्टा-पुल्टा हो गया। जम्मू-कश्मीर में तो खैर भाजपा के लिए कोई चमत्कार नहीं हुआ, लेकिन हरियाणा में पूरी तरह से बाजी पलट गई। आखिर भाजपा ने ऐसा चमत्कार कैसे किया और क्या उसे पहले से पता था कि ऐसा होगा?
जाट और अल्पसंख्यक वोटों पर था कांग्रेस का निशाना
बिहार, उत्तरप्रदेश की तरह हरियाणा में जातीय समीकरण के आगे सारे मुद्दे गौण हो जाते हैं। इस बार भी भाजपा और कांग्रेस ने जातीय समीकरण की बदौलत ही मैदान फतह करने की कोशिश की। किसान आंदोलन के कारण भाजपा के खिलाफ विरोध को भुनाने की कांग्रेस ने पूरी कोशिश की, लेकिन इससे सिर्फ जाट वोटों तक ही उसकी पकड़ बन पाई। विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया को कांग्रेस में शामिल करवाकर भी जाट वोट ही सध पाए। हरियाणा में जाटों की आबादी करीब 22 फीसदी है। यहां 21 फीसदी दलित और अल्पसंख्यक वोट भी हैं, जिसे अपने पाले में करने की कोशिश कांग्रेस करती रही।
भाजपा ने जाटों के सामने ओबीसी को खड़ा कर दिया
भाजपा को यह पता था कि किसान आंदोलन, पहलवान आंदोलन के कारण उसे जाटों के वोट मिलने से रहे। भाजपा यह भी जानती थी कि कांग्रेस इन वोटों में सेंध नहीं लगाने देगी, इसलिए भाजपा ने एक अलग ही चाल चली। भाजपा ने गैर-जाटों विशेषकर ओबीसी को अपने पक्ष में करने की कोशिश की। प्रदेश में ओबीसी की आबादी करीब 35 प्रतिशत है। सवर्ण वोटों को लेकर भाजपा निश्चिंत थीं, लेकिन पूरे चुनाव में पार्टी की यही कोशिश रही कि कांग्रेस इसमें सेंध न लगा पाए। भाजपा ने विभिन्न अभियानों के जरिए अनुसूचित जाति के वोट बैंक में भी सेंध लगाने की कोशिश की, जिसमें कुछ हद तक उसे सफलता भी मिली है।
दूसरे दलों ने कांग्रेस को पहुंचाया नुकसान
हरियाणा में इनेलो-बसपा, जेजेपी-असपा और आप मैदान में तो थी, लेकिन इससे भाजपा को कोई ज्यादा नुकसान नहीं था। जेजेपी और इनेलो की जहां जाट वोटों में पकड़ है, वहीं असपा और बसपा को दलित वोटों का सहारा है। जेल से छूटने के बाद अरविंद केजरीवाल ने पूरा मोर्चा संभाल लिया था, जिसका फायदा उन्हें नहीं हुआ लेकिन आप ने भी सिर्फ कांग्रेस के वोट ही काटे। यही वजह है कि भाजपा को पूरा भरोसा था कि आखिर में हरियाणा के अखाड़े में उसी की जीत होगी।
शहरी मतदाताओं ने भी दिया भाजपा का साथ
प्रारंभिक परिणामों से राजनीतिक जानकार यह अनुमान लगा रहे हैं कि भाजपा को शहरी मतदाताओं का साथ मिला है। इसमें युवाओं की संख्या ज्यादा है। युवाओं के भाजपा के पक्ष में जाने का कारण बेरोजगारी का मुद्दा है। हालांकि दोनों दलों ने इस मुद्दे को उठाया था, लेकिन भाजपा ने पर्ची-खर्ची बिना नौकरी की बात कह युवाओं को लुभाने में सफल रही।
शैलजा की नाराजगी ने भी दिया भाजपा का साथ
कांग्रेस सांसद कुमारी शैलजा की नाराजगी ने भी इस चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शैलजा इस चुनाव में काफी दिनों तक घर बैठी रहीं। तब उनके भाजपा में शामिल होने की बात भी कही जा रही थी। भाजपा के कुछ नेताओं ने एक दलित बेटी के अपमान का मुद्दा भी उठाया था। बाद में कांग्रेस आलाकमान के समझाने पर शैलजा मैदान में उतरी भीं, लेकिन तब तक दलित पार्टी से नाराज हो चुके थे।
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