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गठबंधन की सरकार क्या मोदी की राह होगी आसान  

मोदी सरकार इस बार सहयोगियों की 'बैसाखियों' के सहारे चलेगी। वहीं, गठबंधन की सरकार चलाना भाजपा और मोदी के लिए टेढ़ी खीर साबित होने वाला है।

 

गठबंधन की सरकार क्या मोदी की राह होगी आसान  

 

मोदी सरकार इस बार सहयोगियों की 'बैसाखियों' के सहारे चलेगी। वहीं, गठबंधन की सरकार चलाना भाजपा और मोदी के लिए टेढ़ी खीर साबित होने वाला है। क्योंकि भाजपा  जिन मुद्दों के सहारे हवा बना  चुनाव में उतरी थी, उन्हें सहयोगियों के सहारे जमीन पर उतारना कठिन साबित होने वाला है। इनमें वन इलेक्शन-वन नेशन, यूनिफॉर्म सिविल कोड शामिल हैं, इन्हें भाजपा के संकल्प पत्र और मोदी की गारंटी में शामिल किया गया है। इसके अलावा भाजपा ने परिसीमन का काम चुनावों बाद शुरू करने का वादा किया था। इन मुद्दों को लेकर अब कहा जा रहा है कि इन्हें लागू करने को लेकर आने वाले समय में भाजपा की सहयोगियों के साथ खटपट हो सकती है।   

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भाजपा को इस बार तीसरी बार सत्ता की सीढ़ी तक पहुंचने के लिए सहयोगियों की जरूरत होगी। 272 का जादुई आंकड़ा छूने के लिए इस बार भाजपा को नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के कंधे की जरूरत पड़ेगी। दोनों को साधने के लिए भाजपा ने तैयारियां शुरू कर दी हैं, लेकिन दोनों का साथ इस भाजपा के लिए आसान नहीं होने वाला है। टीडीपी सूत्रों का कहना है कि उन्होंने लोकसभा स्पीकर, रोड ट्रांसपोर्ट, रूरल डेवलपमेंट, हेल्थ, हाउसिंग एंड अर्बन अफेयर्स, कृषि, जल शक्ति, आईटी एंड कम्यूनिकेशंस, एजुकेशन, फाइनेंस (एमओएस) समेत पांच-छह कैबिनेट और राज्य मंत्री का पदों की डिमांड की है। वहीं जेडीयू ने भी स्पीकर के पद की मांग के साथ कैबिनेट में उचित प्रतिनिधित्व मांगा है। भाजपा से जुड़े सूत्र बताते हैं कि दोनों दलों की डिमांड लिस्ट आ गई है। इस पर फैसला भाजपा के नेतृत्व को लेना है। भाजपा नेतृत्व की भी कुछ आशंकाएं और मांगें हैं, जब साथ बैठेंगे तो कुछ न कुछ रास्ता जरूर निकलेगा। 

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नायडू और नीतीश के साथ भाजपा के रिश्ते तो इतने सहज नहीं रहे हैं, तो इस पर भाजपा के सूत्र कहते हैं कि सरकार बनानी है, तो दोनों को साधना होगा और भाजपा नेतृत्व इसमें माहिर है। हालांकि दोनों दलों का साथ भाजपा के लिए इतना भी आसान नहीं रहने वाला है, क्योंकि जरूरत के वक्त अगर किन्हीं मुद्दों पर उन्होंने भाजपा के साथ असहमति जताई, तो ये समर्थन की समीक्षा करने में भी संकोच नहीं करेंगे। इसका ट्रेलर भाजपा 2018 में देख चुकी है। जब आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलने पर टीडीपी ने मोदी सरकार का साथ छोड़ दिया था। दोनों के रिश्ते इतने खराब हो गए थे कि नायडू ने मोदी को 'कट्टर आतंकवादी' तक बता दिया था। 2018 में टीडीपी के अविश्वास प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चंद्रबाबू नायडू की तुलना 'भ्रष्ट राजनीतिज्ञ' से की थी। बाद में, 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद जब टीडीपी ने जब दोबारा से भाजपा के साथ संबंध जोड़ने की कोशिश की, तो भाजपा ने एनडीए में वापसी को लेकर कड़ा रुख अपनाया था। बाद में जब इस साल फरवरी में जेल से रिहा होने के बाद नायडू ने अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ एक मीटिंग की थी, उसके बाद रिश्ते सामान्य हुए थे।

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