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-डॉ.प्रकाश हिन्दुस्तानी, वरिष्ठ पत्रकार
निर्देशक रोशन एंड्रूज चले तो थे दृश्यम या सिंघम सी फिल्म बनाने, लेकिन बन गई कबीर सिंह जैसी फिल्म! यह वैसा ही है जैसे कि घरों में दूध फटने पर पनीर से गुलाब जामुन बनाने की प्रक्रिया!
मलयालम फिल्मों के निर्देशक रोशन एंड्रूज चले तो थे दृश्यम या सिंघम सी फिल्म बनाने, लेकिन बन गई कबीर सिंह जैसी फिल्म! यह वैसा ही है जैसे कि घरों में दूध फटने पर पनीर से गुलाब जामुन बनाने की प्रक्रिया!
हिन्दी फिल्मों के दर्शक दक्षिण भारतीय फिल्मों के रीमेक से उकता गये हैं, लेकिन करें भी तो क्या? हिंदी फिल्म उद्योग में अच्छी फिल्में बन नहीं रही। कारण बहुतेरे हैं।
देवा, करीब 12 साल पहले आई मलयालम की 'मुंबई पुलिस' फिल्म का रीमेक है। शाहिद कपूर ने इसमें पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाई है। ऐसे पुलिस अधिकारी की जो पुलिस की वर्दी में माफिया माना जाता है!
उसका मानना है कि पुलिस की वर्दी यानी खाकी अपने आप में किसी को भी गिरफ्तार करने के लिए काफी है। दक्षिण भारतीय फिल्मों के मशहूर स्टंट डायरेक्टर सुप्रीम सुंदर ने इस फिल्म के निर्माण में बड़ी भूमिका निभाई है। उन्होंने ही एनिमल और देवरा जैसी फिल्मों के एक्शन सीन डिजाइन किये थे।
फिल्म में एक गाने के बोल हैं 'भसड़ मचा के'। लाइन है आला रे आला देवा आला...।
शाहिद कपूर अपनी रोमांटिक भूमिकाओं के लिए मशहूर रहे हैं, लेकिन इस फिल्म में उन्हें डॉन जैसा बनाने की कोशिश की गई है फिल्म में अमिताभ बच्चन वाली डॉन के पोस्टर तो है ही, 'अरे दीवानो, मुझे पहचानो' गाना भी बजाया गया है।
इस फिल्म की कहानी में इतने टर्न और ट्वीट कि लगता है कि दर्शक जो सोचता है, वह नहीं होता। जब फिल्म का अंत आता है तो दर्शकों को अचरज होता है! क्योंकि किसी ने भी ऐसे क्लाइमैक्स की कल्पना नहीं की होगी।
फिल्म के कुछ संवाद याद रह गये -जैसे, "गंदे काम के लिए साफ वर्दी नहीं होनी चाहिए", "मुंबई किसी के बाप का नहीं, पुलिस का है"। एक उद्योगपति को यह कहते दिखाया गया है कि हमारे बच्चे पब्लिक सर्विस नहीं करते हैं। पब्लिक और पब्लिक सर्विस करने वाले हमारी सर्विस करते हैं।
कुल मिलाकर मलयाली फिल्म का रीमिक्स देव एक ऐसी फिल्म है जिसे देखकर भूला जा सकता है। लगता है कि फिल्म को भूल जाने के लिए ही बनाया गया है।
फ़िल्म में पूजा हेगड़े भी हैं, जिनका काम मामूली रहा।
अझेलनीय!
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